Wednesday 4 April 2018

क्योंकि औरत हूँ मैं, सिर्फ औरत हूँ मैं..

इन्सानों की इस दुनिया में एक औरत हूँ मैं..
किसी के लिये सिर्फ़ जिस्म का टुकड़ा..
तो किसी की ज़िन्दगी का आधार हूँ मैं..
किसी ग़ैर के लिये उसकी आँखों की नुमाईश..
तो किसी अपने के लिये सारा संसार हूँ मैं..
किसी के लिये वेश्या तो किसी के लिये मोहब्बत..
पर एक बच्चे के मुँह से निकले माँ शब्द की पुकार हूँ मैं..
जो भी हूँ मैं तुम्हारी नज़र में, पर औरत हूँ मैं..

कभी किसी की माँ, कभी बहन, कभी बीवी..
तो कभी बाज़ारू जिस्म का पुतला रह जाती हूँ मैं..
जुर्म सहते हुए कभी बेसहारा होती हूँ..
तो कभी ज़िंदादिल कहानी बनकर बहुत कह जाती हूँ मैं..
तुझे पैदा करती हूँ, तुझे गले लगाती हूँ..
तुम जितना मेरे दिल की गहराई में उतरोगे..
उतने नये राज़ खोलूंगी मैं..
कभी आज़माईश करके देखो मेरी..
तुम जितना कहो, उतने ही लफ़्ज़ बोलूंगी मैं..
क्योंकि औरत हूँ मैं, सिर्फ औरत हूँ मैं..

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