Sunday 4 March 2018

आज फिर मैं सपनों की दुनिया में अपनी भूख मिटाऊंगा

भूख सबको लगती है
फिर चाहे वो जानवर हो या इंसान
अमीर हो या फिर गरीब
छोटा बच्चा हो या बड़ा
पर इस भूख से उठी लपटों को
कुछ थपथपा कर तसल्ली देते हैं
और सोचते हैं
कैसे इस भूख को मिटाने की
व्यवस्था की जाए
बेशक चलाना पड़े रिक्शा
माँजना पड़े बर्तन , धोना पड़े कपडा
साफ़ करना पड़े शौचालय
कुछ लोग उसे मिटा लेते हैं
मात्र दाल-रोटी खाकर ....
कुछ उस भूख के आगे
छप्पन भोग परोस देते हैं
और भूख को संतुष्ट कर देते हैं
कुछ आधी रोटी सूंघ कर सोचते हैं
इसे थोड़ा बाद में खाऊँगा
और
कुछ को तो रोटी देखे हुए
बीत जातें हैं दिन और
एकबार फिर वो निराश हो
खाली पेट ही नींद को
गले लगाकर सो जातें हैं..

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