Friday 30 June 2017

Best Collection of 2 Line Hindi Shayari By Kranti Gaurav




ख़ाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती छोटी मोटी बात पे हिज़रत नहीं होती,.,
पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे और अब शहर जलें तो हैरत नहीं होती,.,!!

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सच की हालत किसी तवायफ सी है,
तलबगार बहुत हैं तरफदार कोई नही.,.,!!

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इलाज ए इश्क पुछा जो मैने हकीम से
धीरे से सर्द लहजे मे वो बोला
जहर पिया करो सुबह दोपहर शाम,.,!!!

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दुनिया में सब चीज़ मिल जाती है,,,
केवल अपनी ग़लती नहीं मिलती...!!

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जो अंधेरे की तरह डसते रहे ,अब उजाले की कसम खाने लगे
चंद मुर्दे बैठकर श्मशान में ,ज़िंदगी का अर्थ समझाने लगे,..,!!

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हलकी हलकी सी सर्द हवा ,जरा जरा सा दर्द ए दिल
अंदाज अच्छा है ए नवम्बर तेरे आने का,.,!!!

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मोहब्बत हमने सीखी है चराग़ों की शमाओं से
कभी तो रात आएगी कभी तो लौ जलाओगे,.!!

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पहचान कहाँ हो पाती है, अब इंसानों की,.,
अब तो गाड़ी, कपडे लोगों की, औकात तय करते हैं,.,!!

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आख़िर तुम भी उस आइने की तरह ही निकले...
जो भी सामने आया तुम उसी के हो गए.!!

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दिलों में खोट है ज़ुबां से प्यार करते हैं...
बहुत से लोग दुनिया में यही व्यापार करते हैं

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मुझ से पत्थर ये कह कह के बचने लगे ,
तुम ना संभलोगे ठोकरें खा कर ..!!

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पडेगा हम सभी को अब खुले मैदान मे आना,.,
घरों मे बात करने से ये मसले हल नही होंगे,.,!!!

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पालते हैं वे कबूतर पर कतरने के लिए,.,
ताकि बेबस हों उन्हीं के घर उतरने के लिए,.,!!

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मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधू समझता
शत्रु मेरा बन गया है छलरहित व्यवहार मेरा,.,.!!

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सुना था तेरी महफिल में सुकूने-दिल भी मिलता है,.,
मगर हम जब भी तेरी महफिल से आये, बेकरार आये,.,!!!

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गरीबी थी जो सबको एक आंचल में सुला देती थी.,.,
अब अमीरी आ गई सबको अलग मक़ान चाहिए...!!

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दर्द के सिवा कभी कुछ न दिया,
गज़ब के हमदर्द हो आप मेरे !!!

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ना जाने वो बच्चा किससे खेलता होगा…
वो जो मेले में दिन भर खिलौने बेचता हैं,.,!!

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तेरी महफ़िल से उठे तो किसी को खबर तक ना थी,
तेरा मुड़-मुड़कर देखना हमें बदनाम कर गया।

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परिन्दों की फ़ितरत से आए थे वो मेरे दिल में।
ज़रा पंख निकल आए तो आशियाना छोड दिया॥

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ख्वाब ख्याल, मोहब्बत, हक़ीक़त, गम और तन्हाई,
ज़रा सी उम्र मेरी किस-किस के साथ गुज़र गयी !!!

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है होंठ उसके किताबों में लिखी तहरीरों जैसे..,.
ऊँगली रखो तो आगे पढने को जी करता है.,..!!!


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हमने देखा था शौक-ऐ-नजर की खातिर
ये न सोचा था के तुम दिल मैं उतर जाओगे.,.,!!!


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मोहब्बत है गज़ब उसकी शरारत भी निराली है,
बड़ी शिद्दत से वो सब कुछ निभाती है अकेले में.,.,!!!


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अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ...!!


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अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है...!!


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अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
बस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का...!!


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अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो...!!


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अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो
न छोड़ूँगा मैं जैसी चाहे तुम मुझ से क़सम ले लो...!!

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घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है,.,!!

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झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
दर्द से बात करो दर्द से लड़ना छोड़ो,.,!!

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सारी दुनिया से लड़े जिसके लिए
एक दिन उससे भी झगड़ा कर लिया,.,!!

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हम कुछ ऐसे तिरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं,.,!!

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद,.,!!

लोग कहते हैं कि बदनामी से बचना चाहिए
कह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं,.,!!

रोज़ सोचा है भूल जाऊँ तुझे
रोज़ ये बात भूल जाता हूँ,.,!!

उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई...!!


कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था...!!

जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को
जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे...!!

मेरे टूटने की वजह मेरे ज़ौहरी से पूछो,
उसकी ख़्वाहिश थी की मुझे थोड़ा और तराशा जाए,.,!!

सुबह सुबह उठना पड़ता है कमाने के लिए साहेब,
'आराम' कमाने निकलता हूँ... 'आराम' छोड़कर,.,!!

शायद खुशी का दौर भी आ जाए एक दिन 'फ़राज़',
ग़म भी तो मिल गए थे तमन्ना किये बग़ैर..!!

मेरे साथ बैठ कर,वक़्त भी रोया एक दिन,
बोला बन्दा तू ठीक है,मैं ही ख़राब चल रहा हूँ.,.!!

आते-आते आयेगा उनको खयाल,
जाते – जाते बेखयाली जायेगी,.,!!

न जाने कौन सी गलियों में छोड़ आया हूँ
चिराग जलते हुए ख्वाब मुस्कुराते हुए,.,!!

दर्द छुने लगे बुलंदियां तो मुस्कराया जाये
अश्क बहने लगे जब आँख से गुनगुनाया जाये ,.!!

ये कह कर सितम-गर ने ज़ुल्फ़ों को झटका
बहुत दिन से दुनिया परेशाँ नहीं है ,.,!!

चेहरे पे मेरे ज़ुल्फ़ को बिखराओ किसी दिन...
क्या रोज़ गरजते हो, बरस जाओ किसी दिन,.!!

ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
हद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है,.,!!

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया,.,!!

सलीक़े से हवाओं में वो खुश्बू घोल सकते हैं,
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं.,.!!

एक दूकान के आगे लिखा था की उधार एक जादू है,
हम देंगे और आप गायब हो जाओगे......।।

अकेले ही काटना है मुझे जिंदगी का सफर
पल दो पल साथ रहकर मेरी आदत ना खराब करते..!!

दिल की नाज़ुक रगें टूटती हैं
याद इतना भी कोई न आए,.,!!

सबको हम भूल गए जोश-ए-जुनूँ में लेकिन
इक तेरी याद थी ऐसी जो भुलाई न गई,.,!!

किसे ख़बर थी न जाएगी दिल की वीरानी
मैं आईनों में बहुत सज-सजा के बैठ गया,.,!!

हमें माशूक़ को अपना बनाना तक नहीं आता
बनाने वाले आईना बना लेते हैं पत्थर से,.,!!

ज़िन्दगी हो तो कई काम निकल आते है
याद आऊँगा कभी मैं भी ज़रूरत में उसे,.,!!

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं,.,!!

छत की कड़ियों से उतरते हैं मेरे ख़्वाब
मगर मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं,.,!!

मैं सच कहूंगी मगर फ़िर भी हार जाऊँगी
वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा.,.,!!

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं
अश्क बच्चों की तरह घर से निकल जाते हैं,.,!!

गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं,.,!!

ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा
जिसे नफ़रत है उस के आदमी से,.!!

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम,.,!!

इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी
मैं ने तराश कर तिरा चेहरा बना दिया,.,!!

मैं ने उन सब चिड़ियों के पर काट दिए
जिन को अपने अंदर उड़ते देखा था,.,!!

'शुजा' मौत से पहले ज़रूर जी लेना
ये काम भूल न जाना बड़ा ज़रूरी है,.,!!

मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना,.,!!

बात से बात की गहराई चली जाती है
झूट आ जाए तो सच्चाई चली जाती है,.,!!

दोस्तों का क्या है वो तो यूँ भी मिल जाते हैं मुफ़्त
रोज़ इक सच बोल कर दुश्मन कमाने चाहिएँ,.,!!

एक अजीब सी कैफियत है मेरी तेरे बिन,
रह भी लेता हु, और रहा भी नही जाता..!

खूबसूरत था इस कदर कि महसूस ना हुआ… ,
कैसे, कहाँ और कब मेरा बचपन चला गया..

जो तुम्हें हमारे और भी क़रीब लाती है..
मुहब्बत है हमें ऐसी शिकायतों से,.,!!

मैं भी ठहरूँ किसी के होंठों पे
काश कोई मेरे लिए भी दुआ करे,.,!!

सारा बदन अजीब से खुशबु से भर गया
शायद तेरा ख्याल हदों से गुजर गया.,.!!

बाज़ार के रंगों से रंगने की मुझे जरुरत नही,
किसी की याद आते ही ये चेहरा गुलाबी हो जाता है.,.!!

धडकनों को कुछ तो काबू में कर ऐ दिल,
अभी तो पलके झुकाई है, मुस्कुराना बाकी है उनका,.,!!

बहुत कमिया निकालने लगे हैं हम दूसरों में …
आओ एक मुलाक़ात ज़रा आईने से भी कर लें…!!

बेच डाला है दिन का हर लम्हा
रात थोड़ी बहुत हमारी है,.,!!

नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है,.!!

दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी,.,!!

नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई,.,!!

दर्द ही तो था थोड़ा लिख लिया,
थोड़ा कह लिया, तो कभी थोड़ा सह लिया,.,!!

सुलझे-सुलझे बालों वाली लड़की से कोई पूछे तो,
उलझा-उलझा रहने वाला लड़का कैसा लगता है.,.!!

लिखना तो था खुश हु तेरे बग़ैर...
कम्भख्त आंसू क़लम से पहले कागज़ पर गिर पड़े...!!!!

खूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान,
बेचने की ठान लो तो हर तरफ बाज़ार है,.,!!

जमाना हो गया देखो मगर,मेरी चाहत नहीं बदली
किसी की जिद नहीं बदली मेरी आदत नहीं बदली,.,!!

हम जुड़े रहते थे आबाद मकानों की तरह
अब ये बातें हमें लगती हैं फ़सानों की तरह,.,!!

गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना,.,!!

गलियों की उदासी पूछती है घर का सन्नाटा कहता है
इस शहर का हर रहने वाला क्यूँ दूसरे शहर में रहता है,.,!!

यादो की शाल ओढकर वो आवारा गरदियाँ
कुछ यूँ भी गुजारी है हमने दिसम्बर की सर्दियाँ.,.!!

आज फिर वो ख़फ़ा है..
खैर...कौन सा ये पहली दफा है.,.!!

अरे बददुआये … किसी ओर के लिए रख,
मोहब्बत का मरीज हूँ, खुद ब खुद मर जाऊँगा…!!

रजाईयां नहीं हैं....उनके नसीब में...
गरीब गर्म हौंसले ओढ़कर सो जाते हैं..!!

रात भर महका कमर मेरा मोगरे की ख़ुश्बू से
बहुत दिनों बाद मेरे ख्वाबों में तुम आये थे...!!

ए दिसंबर तू भी मेरे जैसा ही है,
आख़िरी में आता है सबको ख़याल तेरा,.,!!

कौन कहता है वक़्त मरता नहीं
हमने सालों को ख़त्म होते देखा दिसंबर में,.,!!

याद-ए-यार का मौसम और सर्द हवाओं का आलम
ऐ दिल जरा सम्हल के दिसंबर जा रहा है,.,!!

ऐ दिल! चुप हो जा बस बहस ना कर
उसके बिना साल गुजर गया "दिसंबर और गुजर जाने दे,.,!!

काश के कोई मेरा अपना सम्भाल ले मुझको,
बहुत थोड़ा रह गया हूँ में भी दिसंबर की तरह,.,!!

एक और ईंट गिर गई दीवार-ए-जिंदगी से:
नादान कह रहे हैं, नया साल मुबारक हो.,.!!

तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया,.,!!

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
आदत इसकी भी आदमी सी है..!!

ये साल भी उदासियाँ दे कर चला गया
तुमसे मिले बग़ैर दिसम्बर चला गया,.,!!

एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है !!

बस तुम्हें पाने की अब तमन्ना नहीं रही,
मोहब्बत तो आज भी बेशुमार करते हैं...!!!

सुनो ,
हम मर मिटे हैं तुम पर...
आओ वो "क़ुबूल" "क़ुबूल" "क़ुबूल" वाला रिश्ता जोड़ें...!!!

उलझा रही है मुझको,यही कश्मकश आजकल;,
तू आ बसी है मुझमें, या मैं तुझमें कहीं खो गया हूँj.

नक़ाब उठ गया महफिल में तेरे आने से..
हिजाब मिट गया इक नज़्म गुनगुनाने से..
जमाल घुल गया था इस क़दर फ़िज़ाओं में....
शराब बन गया पानी तेरे नहाने से...

रक़ीबों के खंज़र से डर नही लगता अब (रक़ीबों=दुश्मनों)
दिल परेशां है अपनों के गैर हो जाने से

वो बस जाती है फकीरी में अक्सर ,
तहजीब दौलत की मोहताज नहीं होती,.,!!

मुक़द्दर में लिखा कर लाएँ हैं हम दर-बदर फिरना
परिंदे कोई मौसम हो परेशानी में रहते हैं,.,!!

उनकी एक झलक पे ठहर जाती है नज़र....खुदाया
कोई हमसे पुछे...दीवानगी क्या होती है ,.,!!!

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता,.,!!

उसका काला टीका किसी सुदर्शन चक्र से कम नहीं..
माँ एक उंगली काजल से सारी बलायें टाल देती है..!!

अजीब ज़माना आया हैं वो शख्स खफा सा लगता हैं ,
मैं दिल तो दे दूँ उस को मगर वो बेवफा सा लगता हैं .,.,!!

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ,.,!!!

अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी
मुझे मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले,.,!!!

ऐ बेख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए
मुझको ख़याल-ए-यार कहीं ढूँडता न हो,.,!!

फुर्सत मिले अगर दूसरो से तो समझना मुझे ज़रूर
तुम्हारी उलझनों का मै मुकम्मल इलाज हूँ.,.,!!

एक रात आप ने उम्मीद पे क्या रक्खा है
आज तक हम ने चराग़ों को जला रक्खा है,.,!!

उम्र कैसे कटेगी 'सैफ़' यहाँ
रात कटती नज़र नहीं आती,.,!!

मुझ को ऊँचाई से गिरना भी है मंज़ूर,
अगर उस की पलकों से जो टूटे, वो सितारा हो जाऊँ !

जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में !!!

खत की खुशबू ये बता रही थी ,.,
लिखते हुए उसकी जुल्फें खुली थी ,.,!!

दिल खामोश सा रहता है आज कल
मुझे शक है कहीं मर तो नही गया !!

ग़रीबों पर तो मौसम भी हुक़ूमत करते रहते हैं,
कभी बारिश कभी गर्मी कभी ठंड का क़ब्ज़ा है.,.!!

ख़्वाब की वादियो से निकलता हुआ
चाँद सो कर उठा आँख मलता हुआ,.,!!

फैसला हो जो भी, मंजूर होना चाहिए ,
जंग हो या इश्क, भरपूर होना चाहिए,.,!!

मैं शब्द तुम अर्थ,
तुम बिन मैं व्यर्थ,.,!!!

एक नाम क्या लिखा तेरा साहिल की रेत पर
फिर उम्र भर हवा से मेरी दुश्मनी रही ,.,!!

किताबें भी बिल्कुल मेरी तरह हैं
अल्फ़ाज़ से भरपूर मगर ख़ामोश,.,!!

आज तक उसकी मोहब्बत का नशा जारी है ,.,
फूल बाकी नहीं , खुशबू का सफर जारी है ,.,!!!

ये मोबाइल के आशिक क्या समझें
कैसे रखते थे खत में कलेजा निकाल के ,.,!!

दिल को हम ढूँडते हैं चार तरफ़ और यहाँ आप लिए बैठे हैं ,.,!!.
तबीअत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं ,.,!!

मैंने ही मैखाने को मैखाना बनाया,
ओर मेरे ही मुक़द्दर में कोई जाम नहीं.,.!!



जिसे मैं ढूँढ रहा था कभी किताबों में,
वो बेनकाब हुआ आकर मेरे ही ख्वाबों में,.,!!



कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी,.,!!



सिर्फ़ इतना फ़ासला है ज़िंदगी से मौत का
शाख़ से तोड़े गए गुल-दान में रक्खे रहे,.,!!



दुआ देते हुए तुम को गुज़र जाएँगे दुनिया से,
मिज़ाजों के क़लन्दर हैं हमें दुनिया से क्या लेना,.,!!



उम्र कितनी मंजिलें तय कर चुकी...
दिल जहां ठहरा ठहरा ही रह गया ...!!



देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
एक आदमी तो शहर में ऐसा दिखाई दे,.,!!



कुछ ज़माने की रविश ने सख़्त मुझको कर दिया
और कुछ बेदर्द मैं उसको भुलाने से हुआ ,.,!!



कुछ देख रहे हैं दिल-ए-बिस्मिल का तड़पना
कुछ ग़ौर से क़ातिल का हुनर देख रहे हैं !!



आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो,.,!!



रोएँगे देख कर सब बिस्तर की हर शिकन को
वो हाल लिख चला हूँ करवट बदल बदल कर,.,!!



फ़ासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था,.,!!



दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे
आज कल इज़हार के धंधे में है घाटा बहुत,.,!!


अगर मै खुद याद ना करू तो तुम पूछते भी नहीं
और बातें यू करते हो जैसे सदियों से तलबगार हो मेरे ,.,!!



जो सपने हमने बोए थे,नीम की ठंडी छाँवों में
कुछ पनघट पर छूट गए,कुछ काग़ज़ की नावों में,.,!!


चाहे जितने इम्तिहान ..आ वक़्त मेरे ले तू
सदा अव्वल आने में माहिर तो हम भी हैं ,.,!!!



बाद मरने के भी उसने छोड़ा न दिल जलाना फ़राज़
रोज़ फ़ेंक जाती है फूल साथ वाली कब्र पर,.,!!



इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते, मैं अच्छा हो नहीं सकता,.,!!



दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
बस इसी बात से दुश्मन मुझे पहचान गए,.,!!



गिरजा में, मंदिरों में, अज़ानों में बट गया होते ही
सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया ,.,!!



वाकिफ़' तेरी आँखों की तारीफ़ कोई करता ही रहा,
क्या ख़बर उसे, ये आँखें अन्धी हैं, किसी के इश्क़ में..!!



अब उसकी शक्ल भी मुश्किल से याद आती है
वो जिसके नाम से होते न थे जुदा मेरे लब ,.,!!



इश्क़ और तबियत का कोई भरोसा नहीं..
मिजाज़ से दोनों ही दगाबाज़ है, जनाब...!!



मुझे मालूम है मेरा मुक़द्दर तुम नहीं...
लेकिन....
मेरी तक़दीर से छुप कर मेरे इक बार
हो जाओ..!!




सारी दुनिया खामोश,.,
बस तेरी बाहें , तेरा आगोश,.,
तुम_साथ_हो.... मै हूँ मदहोश,
बस दो लब हो...और दोनों बेहोश,.,!!!



जो हैरान है मेरे सब्र पर, उनसे कह दो..
जो आंसू जमीं पर नहीं गिरते, दिल चीर जाते हैं..!!



चुरा के मुट्ठी में दिल को छुपाए बैठे हैं
बहाना ये है कि मेहंदी लगाए बैठे हैं,.,.!!!



मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो
मुट्ठी में उनकी दे दे कोई दिल निकाल के,.,!!



फैसला उसने लिखा~कलम मैंने तोड़ दी..!!
आज हमारे प्यार को हाय~फांसी हो गई..!!



मेहँदी लगाने का एक फायदा ये भी हुआ
वो रात भर हमारे बाल समेटते रहे,.,!!!



उसके चेहरे की चमक के सामने सादा लगा
आसमाँ पे चाँद पूरा था, मगर आधा लगा



ऐ जिंदगी..मेरे घर का सीधा सा पता है !
मेरे घर के आगे "मुहब्बत" लिखा है !!



हम अपने-अपने चिरागों पर खूब इतराए,.,
पर उसे ही भूल गए जो हवा चलाता है,.,!!!


एक पल में वहाँ से हम उठे
बैठने में जहाँ ज़माने लगे ,.!!



यारो... कितने सालों के इंतज़ार का सफर खाक हुआ,.
उसने जब पूछा...कहो कैसे आना हुआ,.,!!



अभी अरमान कुछ बाक़ी हैं दिल में
मुझे फिर आज़माया जा रहा है ,.,!!



सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैंने दुनिया छोड़ दी जिन के लिये,.,!!



कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था ,.,!!



ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते
मैं अपने आप से अब सुल्ह करना चाहता हूँ,.,!!



किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के,.,!!


रात फिर अपना जादू चलाने लगी है,
मेरा बर्बाद होना बाकी है अभी शायद,.,!!



ये बेवफाओ का शहर है ग़ालिब
दिल संभाल के रखना
अभी नये आये हो न...!!



हो मुख़ातिब तो कहूँ क्या मर्ज़ है मेरा;
अब तुम ख़त में पूछोगे, तो ख़ैरियत ही कहेंगे..!!



तोड दिये सारे आईने अपने घर के मैने
इश्क मे ठुकराए लोग मुझसे देखे नही जाते,.,!!



वो जो तुमने एक दवा बतलाई थी ग़म के लिए,
ग़म तो ज्यूं का त्यूं रहा बस हम शराबी हो गये !!



कई जवाबों से अच्छी है ख़ामुशी मेरी
न जाने कितने सवालों की आबरू रक्खे,.,!!



ग़ैर को आने न दूँ, तुमको कहीं जाने न दूँ
काश मिल जाए तुम्हारे घर की दरबानी मुझे,.,!!



मेरे हबीब मेरी मुस्कुराहटों पे न जा
ख़ुदा-गवाह मुझे आज भी तेरा ग़म है,.,!!



हमने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमां होकर
क्यों न इंसां से मुहब्बत करें इंसां होकर,.,!!



ज़हर देता है कोई, कोई दवा देता है
जो भी मिलता है मेरा दर्द बढ़ा देता है,.,!!



वादे वफा के और चाहत जिस्म की..
अगर ये प्यार है तो हवस किसे कहते है...!!



कर लिया हर ताल्लुक खत्म उस शख्स से
जो निकाल देता है कमी, मेरी हर बात पे,.,!!



जब इत्मीनान से, खंगाला खुद को,
थोड़ा मै मिला , और बहुत सारे तुम,.,!!


ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या,.,!!



बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए
दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है,.,!!



जो भी कुछ अच्छा बुरा होना है जल्दी हो जाए
शहर जागे या मिरी नींद ही गहरी हो जाए,.!!


यूँ ही जंग कभी जीती नहीं जा सकती
क़दम अपना मैदान में रखना पड़ता है,.!!



मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा
उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ,.,!!



नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उन की आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं,.,!!



अब ये आलम है कि मेरी ज़िंदगी के रात दिन
सुब्ह मिलते हैं मुझे अख़बार में लिपटे हुए,.,!!



साए ढलने चराग़ जलने लगे
लोग अपने घरों को चलने लगे,.,!!



हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं
उस की आँखें कई सदियों की जगी लगती हैं,.,!!



देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से,.,!!



हर गली कूचे में रोने की सदा मेरी है
शहर में जो भी हुआ है वो ख़ता मेरी है,.,!!



जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता,.,!!



मुझे दुश्मनों से भी खुद्दारी की उम्मीद रहती है
सर किसी का भी हो क़दमो में अच्छा नहीं लगता,.,!!



तेरी आंखों में हमने क्या देखा
कभी कातिल कभी खुदा देखा,.,!!



हमें तो उसकी आवाज़ ने ही दीवाना बना दिया था,
खुदगर्ज़ हैं वो लोग जो चेहरा देख के प्यार करते है !!



सुनो माहौल बड़ा ही रंगीन है,आज की शाम का....
मुझमे और फलक में, दोनों में ही मोहब्बत बिखरी हुई है..!!



नींद भी नीलाम हो जाती है बाज़ार-ए- इश्क में,
किसी को भूल कर सो जाना आसान नहीं होता !!



दिल से पूछो तो आज भी तुम मेरे ही हो
ये ओर बात है कि किस्मत दग़ा कर गयी !!



लोग दीवाने हैं बनावट के साहब,
हम अपनी सादग़ी ले के कहां जाएं !!



मिला था एक दिल जो तुमको दे दिया,
हजारों भी होते तो तेरे लिए होते !!

कितना कुछ जानता होगा वो शख्स मेरे बारे में,
मेरे मुस्कुराने पर भी जिसने पूछ लिया की तुम उदास क्यों हो?



जिस्म से होने वाली मुहब्बत का इज़हार आसान होता है,
रुह से हुई मुहब्बत को समझाने में ज़िन्दगी गुज़र जाती है !!



तजुर्बे ने एक ही बात सिखाई है ,
नया दर्द ही पुराने दर्द की दवाई है !!



एक चाहने वाला ऐसा हो,
जो बिलकुल मेरे जैसा हो !!


लूट लेते हैं अपने ही, वरना गैरों को क्या पता
इस दिल की दीवार कमजोर कहाँ से है !!



मुझको मालुम था कि मेरी कमी तुझको महसुस होगी,
युं ही नही था महफिल में तेरा बार बार नजरें घुमाना,.,!!



लगता है गुजर जायेगा ये मौसम भी मोह्हबत का...
मुझको तोहफे में तन्हाईयां देकर..!!



किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते,.,!!



लफ्ज़-ए-तसल्ली तो इक तक़ल्लुफ़ है साहिब,
जिसका दर्द, उसी का दर्द; बाक़ी सब तमाशाई,.!!



ये और बात कि आँधी हमारे बस में नहीं
मगर चराग़ जलाना तो इख़्तियार में है,.,!!



एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
एक दिन जिससे झगड़ते थे उसी के हो गए,.,!!



उन दिनों घर से अजब रिश्ता था,
सारे दरवाज़े गले लगते थे,.,!!



ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
पहलू में तुम आओ कि अभी रात बहुत है,.,!!



मुझ को समझ न पाई मेरी ज़िंदगी कभी
आसानियाँ मुझी से थीं मुश्किल भी मैं ही था,.,!!



आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप
वाक़िफ़ नहीं अभी मेरे दिल की लगी से आप,.,!!



शहर में ओले पड़े हैं सर सलामत है कहाँ
इस क़दर है तेज़ आँधी घर सलामत है कहाँ,.,!!



रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है,.,!!



माँ ने दूध में ज़रा सा पानी मिलाया था...
बच्चे दो थे...हिसाब लगाया था,.,!!



कुछ मजबूरियाँ भी बना देती हैं मजदूर,
मुफलिसी देखती नहीं उम्र किसी की!!



चीख उठे जब ख़ामुशी ,हिलने लगे पहाड़ !
सुनी नहीं है आपने ,चुप की कभी दहाड़ !!



सरहद से आया नहीं , होली पे क्यूँ लाल !
माँ की आँखें रंग से , करती रही सवाल !!

जाने कितने झूले थे फाँसी पर,कितनो ने गोली खाई थी. 🙏
क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से आजादी आई थी.



इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया,,
बातों के तेजाब में सदैव, मेरे मन का अमृत घोल दिया,,,!!




जिसे पूजा था हमने वो तो ख़ुदा ना हो सका,
हम ही इबादत करते करते फ़क़ीर हो गये.,.,!!



मंदिरों में आप ,मनचाहे भजन गाया करें,
मयकदा है ये यहाँ तहज़ीब से आया करें,.,!!!



औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर ~
जिस्म ख़ाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे..!!



आँख खोली तो दूरियाँ थीं बहुत
आँख मीची तो फ़ासला न रहा,.,!!



सुलगती प्यास ने कर ली है मोर्चा-बंदी
इसी ख़ता पे समुंदर ख़िलाफ़ रहता है,.,!!



बस अंधेरे ने रंग बदला है
दिन नहीं है सफ़ेद रात है ये,.,!!



तुम समुंदर की रिफ़ाक़त पे भरोसा न करो
तिश्नगी लब पे सजाए हुए मर जाओगे,.,!!



वो कह कर चले गए कि- कल से भूल जाना हमें,
हमने भी सदियों से आज को रोक रख्खा है!!



दो निवालों के लिए दोहरे हुए बदन,.,
उफ़ ! मंज़र ये और देखा तो ज़हर खाना पड़ेगा,.,!!



अब तक शिकायतें हैं दिल-ए-बद-नसीब से
एक दिन किसी को देख लिया था क़रीब से,.,!!



मैं बदलते हुए हालात में ढल जाता हूँ
देखने वाले अदाकार समझते हैं मुझे ,.,!!



झूठ पर कुछ लगाम है कि नहीं
सच का कोई मक़ाम है कि नहीं
आ रहे हैं बहुत से 'पंडित' भी
जाम का इन्तज़ाम है कि नहीं,.,!!!



बदल देना है रस्ता या कहीं पर बैठ जाना है ...
कि थकता जा रहा है हम-सफ़र आहिस्ता आहिस्ता,.,!!



तुम यूँ ही नाराज़ हुए हो वर्ना मय-ख़ाने का पता
हम ने हर उस शख़्स से पूछा जिस के नैन नशीले थे,.,!!


वो ज़ख्म जो इलाज की हद से गुजर गये,
तेरी नजर के एक इशारे से भर गये,.,!!



है मेरे सामने तेरा किताब सा चेहरा
और इस किताब के औराक़ उलट रहा हूँ मैं,.,!!



तुम्हारी याद के जब जख्म भरने लगते है
किसी बहाने तुमको याद करने लगते हैं,.,!!



इक अमीर शख़्स ने हाथ जोड़ के पूछा एक ग़रीब से
कहीं नींद हो तो बता मुझे कहीं ख़्वाब हों तो उधार दे.,.,!!

नतीजा एक सा निकला दिमाग और दिल का
कि दोनों हार गए तुम्हारे इश्क में.,.!!



डायरी के आखिर में नाम लिखा जो तुम्हारा
सभी पन्नो में कानाफूसी शुरू हो गयी !!


तारीखों मे बँध गया है अब इजहार-ए-मोहब्बत भी..
रोज़ प्यार जताने की अब किसी को फुरसत कहाँ..!!



जख्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख,
तुम हँसे तो मैं भी तेरे साथ हँस दी...!!



पता नही कब जाएगी तेरी लापरवाही की आदत....
पागल कुछ तो सम्भाल कर रखती मुझे भी खो दिया....!!



अपनी आँखों से निचोड़ूँगा किसी रोज़ उसे
करता रहता है बहुत मुझ से किनारा पानी,.,!!!



ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहाँ मे क्या..!!



नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता....!!



देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ,.,!!



खाली-सा पिंजरा लिए फिरता है...
एक नन्हा-सा परिंदा सड़कों पर!!



वो गली हमसे छूटती ही नहीं
क्या करें आस टूटती ही नहीं ,.,!!



एक परिंदा रोज टकराता है मेरे घर के
खिडकियों के शीशों से
जरूर इस इमारत की जगह कोई दरख्त रहा होगा !!



तुम भीगने का वादा तो करो जान...
बारिश मैं लेकर आऊंगा,.,!!




कुछ न था मेरे पास खोने को
तुम मिले हो तो डर गया हूँ मैं,.,!!!




बड़ी अारजू थी महबूब को बे नक़ाब देखने की
दुपट्टा जो सरका तो ज़ुल्फ़ें दीवार बन गयी,.,!!




मुझे इतना भी मत घुमा ए जिंदगी
मै शहर का शायर हूँ MRF का टायर नही,.,!!



यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे
मैं समझता था मेरे यार समझते हैं मुझे,.,!!



दरवाजें बड़े करवाने है। मुझे अपने आशियाने के,.,
क्योकि कुछ दोस्तो का कद बड़ा हो गया है चार पैसे कमाने से,.,!!



धूप में कौन किसे याद किया करता है
पर तेरे शहर में बरसात तो होती होगी ,.,!!



आइना देख के कहते हैं संवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मेरे मरने वाले,.,!!


जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है,.,!!


मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को,.,!!



सब से पहले दिल के ख़ाली-पन को भरना
पैसा सारी उम्र कमाया जा सकता है,.,!!

बहाना कोई तो दे ऐ जिंदगी ,.,
के जीने के लिए मजबूर हो जाऊं ,.,!!

सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है,.,!!

पूछा जो हुस्न क्या है जवानी क्या चीज़ है,
हर- शख्स -की ज़ुबाँ पे तेरा नाम आ गया,.,!!

उसे सोने की ज़ंजीरों से बँधना अच्छा लगता है,
मेरी चाहत के धागों से कहाँ वो शख्स बँधता है,.,!!

मुस्कुराई तो लब उसके ऐसे दिखे,
बाग़ में कोई गुलाब खिल गया जैसे.,!!

सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैं ने दुनिया छोड़ दी जिन के लिए,.,!!

छोड़ आया हूँ पीछे सब आवाज़ों को
ख़ामोशी में दाख़िल होने वाला हूँ,.,!!

न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है,.,!!

बे-ज़ार हो चुके हैं बहुत दिल-लगी से हम
बस हो तो उम्र भर न मिलें अब किसी से हम,.,!!

हम पशु में भी भगवान देख लेते हैं।
वो इंसान को भी काफ़िर कह क़त्ल कर देते हैं,.,!!





एक दिल होता तो एक बार टूटता ग़ालिब..
तुम तो सीने में हज़ार दिल लिये फिरते हो,.,!!





जिस नज़र से हुयी थी हमको मोहब्बत
आज भी उस नज़र को तलाशते फिरते हैं,.,!!





बैठे बैठे दिमाग में ख्याल आया
मैं मर-मरा जाऊँगा तो आप सबको पता कैसे चलेगा ?





ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने

लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई,.!!

हम पे इलजाम ऐसे भी है वैसे भी,
हम तो बदनाम ऐसे भी हैं वैसे भी..!!



आप अगर सत्य का साथ नहीं दे सकते,
तो फिर आप किसी का भी साथ नहीं दे सकते...!!




लोग तेरा जुर्म देखेंगे, सबब देखेगा कौन?
यहाँ सब प्यासे हैं, तेरे खुश्क लब देखेगा कौन?



रंग लाती हो कहाँ से, ये बता दो, तितलियों
ज़िन्दगी में हम भी, कुछ अब ,रंग तो भरते चलें !!




माना कि औरों के जितना पाया नहीं,
पर खुश हूँ कि स्वयं को गिरा कर कुछ उठाया नहीं,.,!!



ना जाने केसे इम्तिहान ले रही है ज़िन्दगी आजकल
मुक़दर ️मोहब्बत ओर दोस्त..तीनों नाराज़ रहते है,.,!!



आजकल बादलों के भी, ना जाने कौन से ख्वाब टूटे हैं
कम्बख्त सारा दिन बरसते रहते हैं, उसी के शहर में,.,!!




शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई,.,!!




दिल मुझे उस गली में ले जा कर
और भी ख़ाक में मिला लाया,.,!!




तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी
हम तो तुम्हारी याद में सब कुछ भुला चुके



फिर उस ने छेड़ दी हैं ऐसी कुछ दिलचस्प बातें
हम अपने मसअले को भूल कर बैठे हुए हैं,.,!!



ये और बात कि बाज़ी इसी के हाथ रही
वगर्ना फ़र्क़ तो ले दे के एक चाल का था,.,!!



करता ही जाऊँ अनसुनी अपने ज़मीर की..
इतना भी तुझपे जिन्दगी, मरता नहीं हूँ मैं !!



जब तक है डोर हाथ में तब तक का खेल है
देखी तो होंगी तुम ने पतंगें कटी हुई,.,!!



मुझसे ना माँगिए मशवरे मंदिर और मस्जिद के मसलो पर

मै इंसान हु साहब खुद किराए के घर मे रहता हू।





एक पुराना सुखा गुलदस्ता पड़ा है अब भी कोने में,
कौन कहता है की घरो में
कब्रिस्तान नहीं होते...





वो मुझे छोड़ के इक शाम ही गए थे ,,,‘
’ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढी,,..





ख़ंजर पे कोई दाग न दामन पे कोई छींट ?
तुम क़त्ल करते हो ! के करामात करते हो





हटाओ आईना उम्मीदवार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं,.,!!





इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने,.,!!

न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं,.!!



मेरे सुर्ख़ लहू से चमकी कितने हाथों में मेहंदी
शहर में जिस दिन क़त्ल हुआ मैं ईद मनाई लोगों ने...!!



ज़िंदगी तुझ से हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझ को मगर इतना भी नहीं,.,!!


और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया...!!



आँखों में छलकते हैं आँसू दिल चुपके चुपके रोता है
वो बात हमारे बस की न थी जिस बात की हिम्मत कर बैठे,.,!!



हर एक शख़्स भटकता है तेरे शहर में यूँ
किसी की जेब में जैसे तेरा पता ही न हो,.,!!



ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं,.,!!!



कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
ज़िंदगी शाम है और शाम ढली जाए है,.,!!



बिखरा दी वहीं ज़ुल्फ़ ज़रा रुख़ से जो सरकी
क्या रात ढले रात वो ढलने नहीं देते,.,!!



तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया,.!!



रुकावटें तो ज़िन्दा इन्सान के हिस्से में ही आती हैं;
अर्थी के लिए तो सब रास्ता छोड़ देते हैं,.,!!



फुर्सत नहीं देती ये जिंदगी …….
चंद लम्हों में दर्द समेटे बैठे हैं,.,!!



एक होने नहीं देती है सियासत लेकिन
हम भी दीवार प दीवार उठाए हुए हैं,.,!!



या तो मिट्टी के घर बनाओ मत
या घटाओं से खौफ़ खाओ मत,.,!!



गरीबी इतनी कि i phone है हाथों में..
अमीरी इतनी के आलू सही लगाओ..!!



अक्सर भूल भी जाता हूँ मैं तुझे.. शाम की चाय में.. चीनी की तरह..
फिर ज़िन्दगी का फीकापन.. तेरी कमी का एहसास दिला देता है,.,!!



परवाह नही चाहे जमाना, कितना भी खिलाफ हो...
चलूगां उसी राह पर , जो सीधा और साफ हो..
और ठेका थोड़ा पास हो,.,!!



चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें,
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को,.,?



मैं तो बस ख़ुद्दार था , वो समझा मग़रूर
कारण था निकला नहीं,मुख से शब्द हुजूर,.,!!



रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे
बरसात में काग़ज़ की तरह भीग गया हूँ,.,!!



हावी जब होने लगें ,दिल पर कुछ जज्बात ।
तुरत पकड़ प्रिय को किसी, कह दो मन की बात ,.,!!



दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद,.,!!



नफ़रतों की जंग में देखो तो क्या क्या हो गया
सब्ज़ियाँ हिन्दू हुईं बकरा मुसलमाँ हो गया,.,!!



कोई टोपी तो कोई अपनी पगङी बेच देता है,
मिले अगर भाव अच्छा, जज भी अपनी कुर्सी बेच देता है,
तवायफ फिर भी अच्छी, कि वो सीमित है कोठे तक,
पुलिस वाला तो चौराहे पर, वर्दी बेच देता है,.,!!!




चला तो मेरे साथ चले थे काफिले
लगा जो काँटा तो अकेला ही रुका मैं ,.,!!




बड़े खुश थे वो, मैने कमियाँ दुसरो की गिनाई तब तक
बारी उनकी आई तो बुरा मान गए ...!!



ये बिगाड़ देती है, ये संवार देती है..
सौबत जरा सोच समझकर किया किजै..!!



मुझे गिराने में ताक़त लगाई है जितनी
तू उस से कम में मुझे पीछे छोड़ सकता था,.,!!




जरूरते ले जाता है दफ्तर में..
और खुशियां घर लाता है..
वो पिता होने के बाद..
खुद के लिए कहाँ जीता है..!!



अजब ये ज़िंदगी की क़ैद है दुनिया का हर इंसाँ
रिहाई माँगता है और रिहा होने से डरता है,.,!!



पलकों तक जमी हुई आँखों में काई अब कौन रखता है,
तक़दीर जिससे लिखी गई वो स्याही अब कौन रखता है,.,!!



मजबूरियाँ हैं कुछ मेरी मैं बेवफा नहीँ,
सुन यह वक्त बेवफा है मेंरी खता नही,.,!!



तुम छत पे नहीं आये मैं घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में...!!!



ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं,.,!!




मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ
तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ,.,!!




माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़
शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी,.,!!



मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो, कुछ हम भी बदल कर देखें,.,!!



बादलों से छूटकर ,,,
बुँदे मेरे आँगन में नाचने आई है ,,❤❤



अब जिसके जी में आए वही पाए रौशनी
हमने तो दिल जला के सर-ए-आम रख दिया,.,!!



जितना कम सामान रहेगा, उतना सफ़र आसान रहेगा
जब तक भारी बक्सा होगा, तब तक तू हैरान रहेगा..!!



या तो मिट्टी के घर बनाओ मत
या घटाओं से खौफ़ खाओ मत !!



मन्दिर , मस्जिद जुबा जुबा पर,और युग बीत गई सारी
न कॊई नमाजी ही बन पाया,और न ही बना कॊई पुजारी,.,!!



बहुत कोशिश की आज 'सिर्फ' बारिश पर शायरी लिखु
पर हर बौछार 'सिर्फ' तुम्हारी याद बरसा रही थी ,.,!!



मोहब्बत में जबरदस्ती अच्छी नहीं होती,
तुम्हारा जब भी दिल चाहे मेरे हो जाना..!!!



बडी लंबी गूफ्तगू करनी है मुझको तुम से ,
तुम आना...मेरे पास
एक पूरी ज़िंदगी लेकर....!!



अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन,.,!!



अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले
ख़ाक से बैठ गए ख़ाक उड़ाने वाले,.,!!




कितने उलझे, कितने सीधे ..
रस्ते, उन के रंग-महल के .,.!!



मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे ज़ेहन में आता क्या है,.,!!



पड़ोसी, पड़ोसी से बेखबर होने लगा है
बधाई हो ! अब ये गाँव शहर होने लगा है,.,!!



ख़ुदगर्ज़ी छुपी रहती है इश्क़ के हर जज़्बात में-
मालूम है मुझे, जँचती हु मैं बस तुम्हारे साथ में,.,!!



मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया,.,!!



इस से बेहतर जवाब क्या होगा
खो गया वो मिरे सवालों में,.,!!



तेरे होंठो में भी क्या खूब नशा है ,.,
लगता है तेरे जूठे पानी से ही शराब बनती है ,.,!!


कुछ न था मेरे पास खोने को
तुम मिले हो तो डर गया हूँ मैं,.,!!

तितलियाँ उड गईं लौटा के मुहब्बत मेरी,
मैं ने भी छोड दिया रंगों को सादा कर के !!

रफ़्ता रफ़्ता धड़कनों से रूह का नाता छूटा हैं,
इस खामोश मोहब्बत में दिल बड़े शोर से टूटा हैं,.,!!

कोशिश बहुत की के राज़-ए-मोहब्बत बयाँ न हो
पर मुमकिन कहां है के आग लगे और धुआँ न हो,.,!!

बस एक ही ख्वाब देखा है कई बार मैंने ,.,
तेरी साड़ी में उलझी हैं चाभियां मेरे घर की ,.,!!

इश्क़ उदासी के पैग़ाम तो लाता रहता है दिन रात
लेकिन हम को ख़ुश रहने की आदत बहुत ज़ियादा है,.,!!

इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे
पहले हम लोग मोहब्बत से मिला करते थे,.,!!

मेरे दिल की परेशानी भला क्यों कम नहीं होती,
भरा है दिल मेरा गम से,ये आंखे नम नहीं होती...!!!

क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ, सच कहना
मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है,.!!

तन्हाई में भी कहते है लोग, जरा महफ़िल में जिया करो
पैमाना लेके बिठा देते है मैखाने में, और कहते है जरा तुम कम पिया करो..!!

छटा चांदनी बिखरे थी, निखरा था महताब।
घडी मिलन की बेला पर, आफताब बेताब

उनके नयनों में मेरे ख्वाबों का पलना बाकी है,
मेरे प्रेम का दीपक उनके दिल में जलना बाकी है.,.!!

रुकने दो मुझको थोडा तुम कुछ पल राहे तकने दो,
इन गलियों में अब तक मेरा चाँद निकालना बाकी है,.,!!

जख्म गरीब का कभी सूख नहीं पाया,
शहजादी की खरोंच पे तमाम हकीम आ गए,.,!!

और अब हादसे भी हैरान हैं गुजर कर मुझसे ।
मैं उजड़ने के बाद भी बसा हुआ लगता हूँ ।।

पूछा हाल शहर का तो,सर झुका के बोले,
लोग तो जिंदा हैं,जमीरों का पता नही,.,!!

हम किसी और को दे सकने के काबिल क्या हैं
हाँ, कोई चाहे तो जीने की अदा ले जाए..!!

बेगुनाह कोई नहीं,
सबके राज़ होते हैं...
किसी के छुप जाते हैं,
किसी के छप जाते हैं...!!

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए,.,!!

वो जो मरने पे तुला है 'अख़्तर'
उस ने जी कर भी तो देखा होगा,.,!!

कैसा लगता है तुमको पनाहों में आकर
नैना कुछ बोल रहे हैं निगाहों में आकर,
क्या रंग डालूँ तुम पर जब तुम
वैसे ही गुलाबी हो गयी बाहों में आकर,.,!!


हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं,.,!!

ज़िंदगी दी हिसाब से उस ने
और ग़म बे-हिसाब लिक्खा है,.,!!

जो सुनना चाहो तो बोल उट्ठेंगे अँधेरे भी
न सुनना चाहो तो दिल की सदा सुनाई न दे,.,!!

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं
गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं.,,!!



टूटे हुए सपनो और छुटे हुए अपनों ने मार दिया,.,
वरना ख़ुशी खुद हमसे मुस्कुराना सीखने आया करती थी,.,!!



मैं क्यूँ कुछ सोच कर दिल छोटा करूँ...
वो उतनी ही कर सकी वफ़ा जितनी उसकी औकात थी...!!



मेरे दिल❤️से खेल तो रहे हो तुम पर..
जरा सम्भल के...
ये थोडा टूटा हुआ है कहीं तुम्हे ही लग ना जाए..!!



समय बहाकर ले जाता है, नाम और निशां,
लेकिन कोई "हम " में रह जाता है, तो कोई "अहम् " में,.,!!



अगर किसी रानी को राजा ना मिल रहा हो...
तो बता दु बचपन में माँ मुझे राजा बेटा बुलाती थी,.,!!



मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को,.,!!



हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी
और उन की तरफ़ ख़ुदाई है,.,!!



मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा
तुम्हारा फ़ैसला था याद होगा,.,!!



ले मेरे तजरबों से सबक़ ऐ मिरे रक़ीब
दो-चार साल उम्र में तुझ से बड़ा हूँ मैं,.,!!



इश्क़ में भी कोई अंजाम हुआ करता है
इश्क़ में याद है आग़ाज़ ही आग़ाज़ मुझे ,.,!!



बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता,.,!!



कुछ इस तरह झटकायी उसने अपनी गीली जुल्फें ,.,
की आज सारे शहर में बारिश का मौशम छा गया ,.,!!



नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है...!!

पीछे बंधे हैं हाथ मगर शर्त है सफ़र
किस से कहें कि पांव का कांटा निकाल दे ,.,!!



है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है,.,!!



तेरी आँखों से एक चीज लाजवाब पीता हूँ ,.,
मैं गरीब जरूर हूँ मगर सबसे महंगी शराब पीता हूँ ,.,!!


सामने आइना रखती तो गश आ जाता ,.,
तुमने अंदाज नहीं देखा अपनी अदा का ,.,!!


बाग़ में टहलते हुए एक दिन जब वो बेनक़ाब हो गए ,.,
जितने पेड़ थे बबूल के सब के सब गुलाब हो गए ,.,!!


कुछ न था मेरे पास खोने को
तुम मिले हो तो डर गया हूँ मैं,.,!!



तितलियाँ उड गईं लौटा के मुहब्बत मेरी,
मैं ने भी छोड दिया रंगों को सादा कर के !!



रफ़्ता रफ़्ता धड़कनों से रूह का नाता छूटा हैं,
इस खामोश मोहब्बत में दिल बड़े शोर से टूटा हैं,.,!!



कोशिश बहुत की के राज़-ए-मोहब्बत बयाँ न हो
पर मुमकिन कहां है के आग लगे और धुआँ न हो,.,!!



बस एक ही ख्वाब देखा है कई बार मैंने ,.,
तेरी साड़ी में उलझी हैं चाभियां मेरे घर की ,.,!!



इश्क़ उदासी के पैग़ाम तो लाता रहता है दिन रात
लेकिन हम को ख़ुश रहने की आदत बहुत ज़ियादा है,.,!!



इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे
पहले हम लोग मोहब्बत से मिला करते थे,.,!!




मेरे दिल की परेशानी भला क्यों कम नहीं होती,
भरा है दिल मेरा गम से,ये आंखे नम नहीं होती...!!!



क्या ग़लत है जो मैं दीवाना हुआ, सच कहना
मेरे महबूब को तुम ने भी अगर देखा है,.!!



तन्हाई में भी कहते है लोग, जरा महफ़िल में जिया करो
पैमाना लेके बिठा देते है मैखाने में, और कहते है जरा तुम कम पिया करो.!!



छटा चांदनी बिखरे थी, निखरा था महताब।
घडी मिलन की बेला पर, आफताब बेताब



उनके नयनों में मेरे ख्वाबों का पलना बाकी है,
मेरे प्रेम का दीपक उनके दिल में जलना बाकी है.,.!!

रुकने दो मुझको थोडा तुम कुछ पल राहे तकने दो,
इन गलियों में अब तक मेरा चाँद निकालना बाकी है,.,!!



जख्म गरीब का कभी सूख नहीं पाया,
शहजादी की खरोंच पे तमाम हकीम आ गए,.,!!



और अब हादसे भी हैरान हैं गुजर कर मुझसे ।
मैं उजड़ने के बाद भी बसा हुआ लगता हूँ ।।



पूछा हाल शहर का तो,सर झुका के बोले,
लोग तो जिंदा हैं,जमीरों का पता नही,.,!!



हम किसी और को दे सकने के काबिल क्या हैं
हाँ, कोई चाहे तो जीने की अदा ले जाए..!!



बेगुनाह कोई नहीं,
सबके राज़ होते हैं...
किसी के छुप जाते हैं,
किसी के छप जाते हैं...!!



अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए,.,!!



वो जो मरने पे तुला है 'अख़्तर'
उस ने जी कर भी तो देखा होगा,.,!!



न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
अजब सफ़र है कि बस हम-सफ़र को देखते हैं,.!!



मेरे सुर्ख़ लहू से चमकी कितने हाथों में मेहंदी
शहर में जिस दिन क़त्ल हुआ मैं ईद मनाई लोगों ने...!!



ज़िंदगी तुझ से हर इक साँस पे समझौता करूँ
शौक़ जीने का है मुझ को मगर इतना भी नहीं,.,!!



और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया...!!



आँखों में छलकते हैं आँसू दिल चुपके चुपके रोता है
वो बात हमारे बस की न थी जिस बात की हिम्मत कर बैठे,.,!!



हर एक शख़्स भटकता है तेरे शहर में यूँ
किसी की जेब में जैसे तेरा पता ही न हो,.,!!



ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं,.,!!!



कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है
ज़िंदगी शाम है और शाम ढली जाए है,.,!!



बिखरा दी वहीं ज़ुल्फ़ ज़रा रुख़ से जो सरकी
क्या रात ढले रात वो ढलने नहीं देते,.,!!



तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया,.!!



रुकावटें तो ज़िन्दा इन्सान के हिस्से में ही आती हैं;
अर्थी के लिए तो सब रास्ता छोड़ देते हैं,.,!!



फुर्सत नहीं देती ये जिंदगी …….
चंद लम्हों में दर्द समेटे बैठे हैं,.,!!



एक होने नहीं देती है सियासत लेकिन
हम भी दीवार प दीवार उठाए हुए हैं,.,!!



या तो मिट्टी के घर बनाओ मत
या घटाओं से खौफ़ खाओ मत,.,!!



गरीबी इतनी कि i phone है हाथों में..
अमीरी इतनी के आलू सही लगाओ..!!



अक्सर भूल भी जाता हूँ मैं तुझे.. शाम की चाय में.. चीनी की तरह..
फिर ज़िन्दगी का फीकापन.. तेरी कमी का एहसास दिला देता है,.,!!



परवाह नही चाहे जमाना, कितना भी खिलाफ हो...
चलूगां उसी राह पर , जो सीधा और साफ हो..
और ठेका थोड़ा पास हो,.,!!



चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें,
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को,.,?



मैं तो बस ख़ुद्दार था , वो समझा मग़रूर
कारण था निकला नहीं,मुख से शब्द हुजूर,.,!!



रहने दो कि अब तुम भी मुझे पढ़ न सकोगे
बरसात में काग़ज़ की तरह भीग गया हूँ,.,!!



हावी जब होने लगें ,दिल पर कुछ जज्बात ।
तुरत पकड़ प्रिय को किसी, कह दो मन की बात ,.,!!



दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद,.,!!



नफ़रतों की जंग में देखो तो क्या क्या हो गया
सब्ज़ियाँ हिन्दू हुईं बकरा मुसलमाँ हो गया,.,!!



कोई टोपी तो कोई अपनी पगङी बेच देता है,
मिले अगर भाव अच्छा, जज भी अपनी कुर्सी बेच देता है,
तवायफ फिर भी अच्छी, कि वो सीमित है कोठे तक,
पुलिस वाला तो चौराहे पर, वर्दी बेच देता है,.,!!!




चला तो मेरे साथ चले थे काफिले
लगा जो काँटा तो अकेला ही रुका मैं ,.,!!




बड़े खुश थे वो, मैने कमियाँ दुसरो की गिनाई तब तक
बारी उनकी आई तो बुरा मान गए ...!!



ये बिगाड़ देती है, ये संवार देती है..
सौबत जरा सोच समझकर किया किजै..!!



मुझे गिराने में ताक़त लगाई है जितनी
तू उस से कम में मुझे पीछे छोड़ सकता था,.,!!




जरूरते ले जाता है दफ्तर में..
और खुशियां घर लाता है..
वो पिता होने के बाद..
खुद के लिए कहाँ जीता है..!!



अजब ये ज़िंदगी की क़ैद है दुनिया का हर इंसाँ
रिहाई माँगता है और रिहा होने से डरता है,.,!!



पलकों तक जमी हुई आँखों में काई अब कौन रखता है,
तक़दीर जिससे लिखी गई वो स्याही अब कौन रखता है,.,!!



मजबूरियाँ हैं कुछ मेरी मैं बेवफा नहीँ,
सुन यह वक्त बेवफा है मेंरी खता नही,.,!!



तुम छत पे नहीं आये मैं घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में...!!!



ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं,.,!!




मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ
तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ,.,!!




माह-ए-नौ देखने तुम छत पे न जाना हरगिज़
शहर में ईद की तारीख़ बदल जाएगी,.,!!



मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो, कुछ हम भी बदल कर देखें,.,!!



बादलों से छूटकर ,,,
बुँदे मेरे आँगन में नाचने आई है ,,😍😍❤❤






अब जिसके जी में आए वही पाए रौशनी
हमने तो दिल जला के सर-ए-आम रख दिया,.,!!



जितना कम सामान रहेगा, उतना सफ़र आसान रहेगा
जब तक भारी बक्सा होगा, तब तक तू हैरान रहेगा..!!



या तो मिट्टी के घर बनाओ मत
या घटाओं से खौफ़ खाओ मत !!



मन्दिर , मस्जिद जुबा जुबा पर,और युग बीत गई सारी
न कॊई नमाजी ही बन पाया,और न ही बना कॊई पुजारी,.,!!



बहुत कोशिश की आज 'सिर्फ' बारिश पर शायरी लिखु
पर हर बौछार 'सिर्फ' तुम्हारी याद बरसा रही थी ,.,!!



मोहब्बत में जबरदस्ती अच्छी नहीं होती,
तुम्हारा जब भी दिल चाहे मेरे हो जाना..!!!



बडी लंबी गूफ्तगू करनी है मुझको तुम से ,
तुम आना...मेरे पास
एक पूरी ज़िंदगी लेकर....!!



अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन,.,!!



अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले
ख़ाक से बैठ गए ख़ाक उड़ाने वाले,.,!!




कितने उलझे, कितने सीधे ..
रस्ते, उन के रंग-महल के .,.!!



मैं तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
देख कर मुझको तेरे ज़ेहन में आता क्या है,.,!!



पड़ोसी, पड़ोसी से बेखबर होने लगा है
बधाई हो ! अब ये गाँव शहर होने लगा है,.,!!



ख़ुदगर्ज़ी छुपी रहती है इश्क़ के हर जज़्बात में-
मालूम है मुझे, जँचती हु मैं बस तुम्हारे साथ में,.,!!



मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया,.,!!



इस से बेहतर जवाब क्या होगा
खो गया वो मिरे सवालों में,.,!!



तेरे होंठो में भी क्या खूब नशा है ,.,
लगता है तेरे जूठे पानी से ही शराब बनती है ,.,!!



कैसा लगता है तुमको पनाहों में आकर
नैना कुछ बोल रहे हैं निगाहों में आकर,
क्या रंग डालूँ तुम पर जब तुम
वैसे ही गुलाबी हो गयी बाहों में आकर,.,!!



हम पे इलजाम ऐसे भी है वैसे भी,
हम तो बदनाम ऐसे भी हैं वैसे भी..!!



आप अगर सत्य का साथ नहीं दे सकते,
तो फिर आप किसी का भी साथ नहीं दे सकते...!!




लोग तेरा जुर्म देखेंगे, सबब देखेगा कौन?
यहाँ सब प्यासे हैं, तेरे खुश्क लब देखेगा कौन?



रंग लाती हो कहाँ से, ये बता दो, तितलियों
ज़िन्दगी में हम भी, कुछ अब ,रंग तो भरते चलें !!



माना कि औरों के जितना पाया नहीं,
पर खुश हूँ कि स्वयं को गिरा कर कुछ उठाया नहीं,.,!!



ना जाने केसे इम्तिहान ले रही है ज़िन्दगी आजकल
मुक़दर ️मोहब्बत ओर दोस्त..तीनों नाराज़ रहते है,.,!!



आजकल बादलों के भी, ना जाने कौन से ख्वाब टूटे हैं
कम्बख्त सारा दिन बरसते रहते हैं, उसी के शहर में,.,!!




शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई,.,!!




दिल मुझे उस गली में ले जा कर
और भी ख़ाक में मिला लाया,.,!!




तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी
हम तो तुम्हारी याद में सब कुछ भुला चुके



फिर उस ने छेड़ दी हैं ऐसी कुछ दिलचस्प बातें
हम अपने मसअले को भूल कर बैठे हुए हैं,.,!!



ये और बात कि बाज़ी इसी के हाथ रही
वगर्ना फ़र्क़ तो ले दे के एक चाल का था,.,!!



करता ही जाऊँ अनसुनी अपने ज़मीर की..
इतना भी तुझपे जिन्दगी, मरता नहीं हूँ मैं !!



जब तक है डोर हाथ में तब तक का खेल है
देखी तो होंगी तुम ने पतंगें कटी हुई,.,!!



मुझसे ना माँगिए मशवरे मंदिर और मस्जिद के मसलो पर

मै इंसान हु साहब खुद किराए के घर मे रहता हू।





एक पुराना सुखा गुलदस्ता पड़ा है अब भी कोने में,
कौन कहता है की घरो में
कब्रिस्तान नहीं होते...





वो मुझे छोड़ के इक शाम ही गए थे ,,,‘
’ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढी,,..





ख़ंजर पे कोई दाग न दामन पे कोई छींट ?
तुम क़त्ल करते हो ! के करामात करते हो





हटाओ आईना उम्मीदवार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं,.,!!





इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैं ने,.,!!





जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है,.,!!





मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले
अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को,.,!!





सब से पहले दिल के ख़ाली-पन को भरना
पैसा सारी उम्र कमाया जा सकता है,.,!!





बहाना कोई तो दे ऐ जिंदगी ,.,
के जीने के लिए मजबूर हो जाऊं ,.,!!





सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है,.,!!





पूछा जो हुस्न क्या है जवानी क्या चीज़ है,
हर- शख्स -की ज़ुबाँ पे तेरा नाम आ गया,.,!!





उसे सोने की ज़ंजीरों से बँधना अच्छा लगता है,
मेरी चाहत के धागों से कहाँ वो शख्स बँधता है,.,!!





मुस्कुराई तो लब उसके ऐसे दिखे,
बाग़ में कोई गुलाब खिल गया जैसे.,!!





सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा
मैं ने दुनिया छोड़ दी जिन के लिए,.,!!





छोड़ आया हूँ पीछे सब आवाज़ों को
ख़ामोशी में दाख़िल होने वाला हूँ,.,!!





न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है,.,!!





बे-ज़ार हो चुके हैं बहुत दिल-लगी से हम
बस हो तो उम्र भर न मिलें अब किसी से हम,.,!!





हम पशु में भी भगवान देख लेते हैं।
वो इंसान को भी काफ़िर कह क़त्ल कर देते हैं,.,!!





एक दिल होता तो एक बार टूटता ग़ालिब..
तुम तो सीने में हज़ार दिल लिये फिरते हो,.,!!





जिस नज़र से हुयी थी हमको मोहब्बत
आज भी उस नज़र को तलाशते फिरते हैं,.,!!





बैठे बैठे दिमाग में ख्याल आया
मैं मर-मरा जाऊँगा तो आप सबको पता कैसे चलेगा ?





ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई,.!!


अभी तो चाँद लफ़्ज़ों में समेटा है तुझे मैंने..
अभी तो मेरी किताबों में तेरी तफ़्सीर बाक़ी है,.,!!



फिर तेरी यादें, तेरी तलब, तेरी बातें,
लगता है; सुकुन मेरा , तुम्हे रास नही आता !!!



हमारे बीच अभी आया नहीं कोई दुश्मन,
अभी ये तिरी मिरी दोस्ती अधूरी है...!!



जिसको ख़ुश रहने के सामान मयस्सर सब हों
उसको ख़ुश रहना भी आए ये ज़रूरी तो नहीं ,.,!!



हुकुमत वो ही करता है जिसका दिलो पर राज हो ,
वरना यूँ तो गली के मुर्गो के सर पे भी ताज होता है !!



कभी वक्त मिले तो रखना कदम , मेरे दिल के आगंन में !
हैरान रह जाओगे मेरे दिल में , अपना मुकाम देखकर ।!



बात करो रुठे यारो से,सन्नाटे से डर जाते है ll
प्यार अकेला जी सकता है,दोस्त अकेले मर जाते हैं ll



किसी ने हमसे कहा इश्क़ धीमा ज़हर है,
हमने मुस्कुरा के कहा, हमें भी जल्दी नहीं है..,.!!



अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो,.,
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए,.,!!!



बड़ी देर कर दी मेरा दिल तोड़ने 💔 में,
न जाने कितने शायर मुझसे आगे चले गये..।।



मैं राज़ तुझसे कहूँ हमराज़ बन जा ज़रा
करनी है कुछ गुफ्तगू अल्फ़ाज़ बन जा ज़रा..।।



रस्ते कहाँ खत्म होते हैं जिंदगी के सफर में...
मजिल तो वही है...जहां ख्वाहिशें थम जाएँ..!!



तुम्हे तो सबसे पहले बज्म में मौजूद रहना था,
ये दुनिया क्या कहेगी शम्मा परवानों के बाद आई,.,!!



मिरे बग़ैर कोई तुम को ढूँडता कैसे
तुम्हें पता है तुम्हारा पता रहा हूँ मैं



हैं राख राख मगर आज तक नहीं बिखरे
कहो हवा से हमारी मिसाल ले आए !



क्या खबर थी कभी , इस दिल की ये हालत होगी ,
धड़केगा दिल मेरे सीने में , और सांसे तेरी होंगी !!


ताबीज होते हैं कुछ लोग
गले लगते ही सुकूँ मिलता है,.,!!



इधर आ सितमगर हुनर आजमायें,
तू तीर आज्मां, मैं जिगर आजमाऊँ !!!



अजीब खेल है ये मोहब्बत का,
किसी को हम न मिले, कोई हमें ना मिला



रोज सजते हैं जो कोठों पे हवस के नश्तर,,
हम दरिंदे ना होते तो वो माँए होतीं ...

इन्हीं रास्तों ने जिन पर मिरे साथ तुम चले थे
मुझे रोक रोक पूछा तिरा हम-सफ़र कहाँ है,.,.??

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उदास रहता है मोहल्ले में बारिशो का पानी आजकल...
सुना है कागज की नाव बनाने वाले बड़े हो गए...!!!

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माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके
कुछ ख़ार कम तो कर गए गुज़रे जिधर से हम,.,!!

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उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की याद
कट रही है ज़िंदगी आराम से,.,!!

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मुँह छुपाना था तुम्हें पहले ही रोज़
अब किया पर्दा तो क्या पर्दा किया,.,!!!

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अब तो इंसान ही रह गये है...
इंसानियत तो कब की मर गयी....!!!

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दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन,.,!!!

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मेरी हर बात को उल्टा वो समझ लेते हैं
अब कि पूछा तो ये कह दूँगा कि हाल अच्छा है,.,!!!

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कुछ इस अदा से मिरे साथ बेवफ़ाई कर
कि तेरे बाद मुझे कोई बेवफ़ा न लगे,.,!!

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कुछ कह रही हैं आप के सीने की धड़कनें
मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइए ,.,!!

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दिल हर किसी के लिए नहीं धड़कता ,.,
धड़कनों के भी अपने कुछ उसूल होते हैं ,.,!!!

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बहुत गुमनाम से है चाहत के रास्ते
तू भी लापता... मैं भी लापता.!!!

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मत सोच इतना जिन्दगी के बारे में..
जिसने जिन्दगी दी है उसने भी तो कुछ सोचा होगा,.,!!!

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उनकी एक झलक पे ठहर जाती है नज़र....खुदाया !
कोई हमसे पुछे...दीवानगी क्या होती है ,.,!!!

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अकेला वारिस हूँ उसकी तमाम नफरतों का,
जो शख्स सारे शहर में प्यार बाटंता है,.,!!!

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एक शर्त है साकी
आज होठों से पिला

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सपना टूटा आँख में, नीद हुई अब दूर
मन आतुर प्रिय मिलन को, बारिश से मजबूर,.,!!!

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जब भी होती है गुफ्तगु खुद से,
ज़िक्र तेरा जरूर होता है,.,!!

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सूखते पत्ते ने डाली से कहा, 'चुपके से अलग करना'..
वरना..
'लोगों का रिश्तों से भरोसा उठ जायेगा'.!!!

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ऐ मौत आ के हमको खामोश तो कर गई तू,
मगर सदियों दिलों के अंदर, हम गूंजते रहेंगे,.,!!!

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काट कर मेरी जुबां कर गया खामोश मुझे !
बेखबर को नहीं मालूम कि "मन" बोलता है !!

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बारिश में चलने से एक बात याद आई,
फिसलने के डर से वो मेरा हाथ पकर लेती थी...!!!

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ये कसूर तुम्हारा नहीं, तुम्हारी इन आँखों का है,
नहीं संभलती देख, इश्क में बरबाद लोगों को।

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ख्वाईशो घर भरा पडा है इस कदर ,,,,
के रिश्ते जरा सी जगह को तरसते है ,,!!

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काश मैं लौट जाऊँ बचपन की उन गलियों में ~
जहां ना कोई ज़रूरत थी, ना कोई ज़रूरी था..!!

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मुद्दत से कोई उसकी छाँव में नहीं बैठा...
वो छायादार पेड़ इसी गम में सुख गया...!!

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शायद तुम कभी प्यासे मेरी तरफ लौट आओ...
आँखों में लिए फिरती हूँ दरिया.. तुम्हारे लिए...!!

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कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे...

यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे...!!!

------------------------------------------------------------------------------

तुम्हारे चाँद से चेहरे की अगर दीद हो जाए ,.,
कसम अपनी आँखों की ,हमारी ईद हो जाए ,.,!!!

-----------------------------------------------------------------------------

नया नया शौक उन्हे रुठने का लगा है...
खुद ही भूल जाते है कि रूठे किस बात पे थे...!!

------------------------------------------------------------------------------

मैं अपनी मोहब्बत में बच्चों की तरह हूँ
जो मेरा है बस मेरा है, किसी और को क्यों दूँ ,.,!!!

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तुझे क्या देखा, खुद को ही भूल गए हम इस क़दर..
कि अपने ही घर आये तो औरों से पता पूछकर,.,!!!

------------------------------------------------------------------------------

बड़े अनमोल हे ये खून के रिश्ते
इनको तू बेकार न कर ,
मेरा हिस्सा भी तू ले ले मेरे भाई
घर के आँगन में दीवार ना कर.

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उनसे कह दो मेरी सजा कुछ कम कर दे..
हम पेशे से मुजरिम नहीं बस गलती से इश्क़ हुआ था.

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एक छोटा गुनाह मोहब्बत का,
उम्र भर का हिसाब लेता है....!!!

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यूं समझ लो कि,
लगी प्यास गज़ब की थी और पानी में जहर भी था,
पीते तो मर जाते और न पीते तो भी मर जाते...!!!

इन चराग़ों में तेल ही कम था
क्यूँ गिला फिर हमें हवा से रहे...!!

------------------------------------------------

रूह में,दिल में,जिस्म में दुनिया,
ढूंढता हूँ मगर नही मिलती.
लोग कहते हैं रूह बिकती है,
मैं जिधर हूँ उधर नही मिलती,.,!!!

------------------------------------------------

मेरी रूह गुलाम हो गई है, तेरे इश्क़ में शायद ..
वरना यूँ छटपटाना , मेरी आदत तो ना थी...!!!

-------------------------------------------------

ना जाने वो आइना कैसे देखते होंगे
जिसकी आखो को देख दुनिया फना हैं,.,!!!

-------------------------------------------------

सुनो
सारा जहाँ उसी का है जो
मुस्कुराना जानता है~~!!

-------------------------------------------------

एक तेरी नफरत पर भी तो लूटा दी ज़िन्दगी हमने..
सोचो अगर तुम्हे मोहब्बत होती तो हम क्या करते...??



-------------------------------------------------

आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न
आया मेरा ख़याल तो शर्मा के रह गए,.,!!

-------------------------------------------------

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है,.,!!!

-------------------------------------------------

मुस्कुराते हुए चेहरे ,हैं
छुपाये राज गहरे,.,.!!!

-------------------------------------------------

आज दिल उदास नहीं,
अहसास है तू पास नहीं.
लब हस्ते हैं मेरे,
झूट हैं या सच कोई सवाल नहीं.,.,!!!

-------------------------------------------------

छीन कर हाथो से सिगार वो कुछ इस अंदाज़ से बोली,
कमी क्या है इन होठोंमें जो तुम सिगरेट पीते हो...!!!

-------------------------------------------------

जिंदगी बस इतना अगर दे तो काफी हैं,
सर से चादर न हटे, पांव भी चादर में रहे,.,!!!

-------------------------------------------------

शिकायते तो हमे तुम्हारी आखो के काजल से है
जो हमारे जाने बाद चमकते हुए चहरे पर दाग लगा देता है,.,!!!

-------------------------------------------------

अब तो दिन में भी चेहरे धुंधले नजर आते हैं
लगता है उजालों में अँधेरे की मिलावट है,.,!!!

-------------------------------------------------

इलाही कैसी कैसी सूरते तुमने बनाई हैं
कि हर सूरत कलेजे को लगा लेने के काबिल है,.,!!

-------------------------------------------------

अपना नाम तक भूल गया हुँ तुम्हारे शहर में
जब से लोग तुम्हारे नाम से जानने लगे है,.,!!!

-------------------------------------------------

अब कटेगी ज़िन्दगी सुकून से ...
अब हम भी मतलबी हो गए हैं,.,!!!

-------------------------------------------------

मुकम्मल थी वो गुफ्तगू बिना अल्फाज़ों के भी कुछ यूं,
उसकी उंगलियाँ बोल रही थीं उनकी ज़ुल्फ़ों से.!!

-------------------------------------------------

कभी मुँह मे उसका नाम तो कभी सिगरेट का साथ
मेरे होंठो ने हमेशा चिंगारियां ही पसंद की,.,!!!

-------------------------------------------------

तेरे दावे हैं तरक्की के.. तो फिर ऐसा क्यों है
मुल्क मेरा आज भी.. फुटपाथ पर सोता क्यों है,.,???


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तुम्हारा शक सिर्फ हवाओ, पे गया होगा..
चिराग खुद भी तो जल,जल के थक गया होगा..!!!

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होती है ज़रूरत अमीर के बच्चों को "खिलोनों" की..
गरीब के बच्चे तो एक "बोरी" में भी खुशिया तलाश लेते है...!!

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दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया,.,!!!

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बेपरवाह.., लापरवाह.., बागी होते हैं..,
नंगे पाँव चलने वाले..,
अक्सर नई दिशाओं को पदचिन्ह दे जाते हैं.. !!

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सीखा है हमने जिंदगी से एक तजुर्बा..
जिम्मेदारी इन्सान को वक़्त से पहले बड़ा बना देती है..!!!

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फाकों में ही गुज़र जाता है पूरा दिन.!!
ऊपर वाला न जाने कब हमारा रोजा खोलेगा.!!!

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जब हुयी थी पहली बारिश,
तुमको सामने पाया था,

वो बुंदो से भरा चेहरा,
तुम्हारा हम कैसे भूला पायेंगे..!!!


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अगर है गहराई ...
तो चल डुबा दे मुझ को,
समंदर नाकाम रहा ...
अब तेरी आँखो की बारी है !!!

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तेरा सरसरी निगाह से देखना
और नजरे चुरा लेना ...
बस तस्सली देता है
अब हम अजनबी तो नहीं !!!

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फिर से तेरी यादें मेरे दिल के दरवाजे पे खड़ी हैं
वही मौसम, वही बारिश, वही दिलकश ‘महीना है,.,!!

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गजब के खरीदार है वो राह-ए- इश्क के !
वो मुस्कुरा देते है और हम बिक जाते है !!

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शीशा टूटे ग़ुल मच जाए
दिल टूटे आवाज़ न आए,.,!!!

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वो जो हाथ तक से छुने को बे-अदबी समझता था..
गले से लगकर बहोत रोया बिछडने से जरा पहले..!!

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बादलो से कह दो जरा सोच समझकर बरसे,
अगर मुझे उसकी याद आ गयी तो मुकाबला बराबरी का होगा..!!

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तेरी तिरछी नज़र का तीर है मुश्किल से निकलेगा
दिल उसके साथ निकलेगा, अगर ये दिल से निकलेगा,.,!!!

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तुम पर भी यकीन है और मौत पर भी ऐतबार है
देखें पहले कौन मिलता है , हमें दोनों का इंतजार है ..!!!

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चुप्पियों पर चुटकियाँ लेते थे खूब जो
अपनी ही चुप्पियों पर कुछ कहते नहीं बनता,.,!!!

मुझ पर जो बीती वो दास्तान सुनाउं कैसे...

मुझ पर जो बीती वो दास्तान सुनाउं कैसे...
जख्म दिल में हुए है तुम्हे दिखाउं कैसे...


गर गैर होता तो भुला देता मैं उसको...
अपनों से भी अपना था उसको भुलाउं कैसे...


देखता हूं उसकी तस्वीर अश्क बहने लगते है...
आंखों में इन अश्कों को अब छुपाउं कैसे...


याद उसकी तन्हा होने का अहसास दिलाती है मुझको...
इस तन्हाई से पीछा अब मैं छुडाउं कैसे...


जी रहा है वो मेरे बिन नयी दुनियां बसाके...
मेरी दुनिया थी वो उसके बिन जिन्दगी बिताउं कैसे...


इतना कमजोर हो गया खुद को मिटा भी नहीं सकता...
दिल में बसी है तस्वीर उसकी खंजर चलाउं कैसे...

भगवान ने क्या हिंदू - मुसलमां बनाया था ??

मस्जिद में हाथ जोड़ कर, मै कुछ बुदबुदाया था !
तिरछी हुई नजरें सभी, थप्पड़ भी खाया था !


बेहद अजीज वो था, बेहद पसंद थी उसकी खीर ,
फिर भी गया न ईद में, उसने बुलाया था !


मां ने कहा था बेटा वो, गौ- मांस खाते हैं ,
छोटा था मैं, मुझको समझ में, कुछ न आया था !


वो भी था मजा चाहता, अम्मी ने उसकी किया बंद,
होली में रंग खेलने को , वो छटपटाया था !


बातों ही बातों में जो मेरा, जिक्र था आया ,
मुझको पता चला मुझे, उसने काफिर बताया था !


वो मेरे एतराज पे, बोला क्यूँ दुःखी हूं ,
उसको तो मौलवी ने ही, ये सब सिखाया था !


उस मौलवी को क्या कहूं, इक शब्द की खातिर,
उस शब्द से यारी गयी, कुछ भी न भाया था !


नफरत के लिये हम वजह, जो धर्म को माने ,
खोजो ये नाम हिंदू - मुस्लिम, कौन लाया था !


इंसान हैं, इंसान बन के, रह न पायें क्यूँ ?



भगवान ने क्या हिंदू - मुसलमां बनाया था ??

चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से

चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से
गोलियाँ चलती रहीं इस पार से उस पार से

मिट गया इक नौजवां कल फिर वतन के वास्ते
चीख तक उट्ठी नहीं इक भी किसी अखबार से

कितने दिन बीते कि हूँ मुस्तैद सरहद पर इधर
बाट जोहे है उधर माँ पिछले ही त्योहार से

अब शहीदों की चिताओं पर न मेले लगते हैं
है कहाँ फुरसत जरा भी लोगों को घर-बार से

मुट्ठियाँ भीचे हुये कितने दशक बीतेंगे और
क्या सुलझता है कोई मुद्दा कभी हथियार से

मुर्तियाँ बन रह गये वो चौक पर, चौराहे पर,
खींच लाये थे जो किश्ती मुल्क की मझधार से

बैठता हूँ जब भी "रवि" दुश्मनों की घात में
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से !

है कितनी खामोश ये घडी जो कुछ सोच कर चुप रहती है

है कितनी खामोश ये घडी जो कुछ सोच कर चुप रहती है
लगता है क्यूँ तेरी खामोशी आज भी मेरा इन्तेजार करती है


हर पल की कीमत समझती है फिरभी, ये ज़िन्दगी क्यूँ ये लम्हे तुझपे निसार करती है
क्यों लगता के वो शिद्दत तेरी आँखों की मुझसे आज भी प्यार करती है


जानती है तेरी मंजिले अलग है मेरी राहों से ,
फिर क्यूँ आज भी ये तेरे होने का वहम बार-बार करती हैं...

ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम.

ये ठीक है कि तेरी गली में न आयें हम.
लेकिन ये क्या कि शहर तेरा छोड़ जाएँ हम.


मुद्दत हुई है कूए बुताँ की तरफ़ गए,
आवारगी से दिल को कहाँ तक बचाएँ हम.


शायद बकैदे-जीस्त ये साअत न आ सके
तुम दास्ताने-शौक़ सुनो और सुनाएँ हम.


उसके बगैर आज बहोत जी उदास है,
'जालिब' चलो कहीं से उसे ढूँढ लायें हम.


सिखा देती है चलना ठोकरें भी राहगीरों को
कोई रास्ता सदा दुशवार हो ऐसा नहीं होता


कहीं तो कोई होगा जिसको अपनी भी ज़रूरत हो
हरेक बाज़ी में दिल की हार हो ऐसा नहीं होता


जो हो इक बार, वह हर बार हो ऐसा नहीं होता
हमेशा एक ही से प्यार हो ऐसा नहीं होता


हरेक कश्ती का अपना तज्रिबा होता है दरिया में
सफर में रोज़ ही मंझदार हो ऐसा नहीं होता


कहानी में तो किरदारों को जो चाहे बना दीजे
हक़ीक़त भी कहानी कार हो ऐसा नहीं होता...

इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे

इस शहर-ए-खराबी में गम-ए-इश्क के मारे
ज़िंदा हैं यही बात बड़ी बात है प्यारे


ये हंसता हुआ लिखना ये पुरनूर सितारे
ताबिंदा-ओ-पा_इन्दा हैं ज़र्रों के सहारे


हसरत है कोई गुंचा हमें प्यार से देखे
अरमां है कोई फूल हमें दिल से पुकारे


हर सुबह मेरी सुबह पे रोती रही शबनम
हर रात मेरी रात पे हँसते रहे तारे


कुछ और भी हैं काम हमें ए गम-ए-जानां
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे

मेरी आँखों में जो, बहता हुवा, ये पानी है

मेरी आँखों में जो, बहता हुवा, ये पानी है -
तेरी चाहत, की यही आखिरी निशानी है ...


मैंने सोचा था तुम्हे, क्या मगर, तू क्या निकला,
तू भी औरों की तरह, कितना, बेवफा निकला,
दूर जाना था तो फिर, पास बुलाया क्यों था,
तू हमारा है, ये एहसास दिलाया क्यूँ था...
मेरी बर्बादी फकत ये तेरी मेहरबानी है,
तेरी चाहत, की यही आखिरी निशानी है........


मेरी आँखों में जो, बहता हुवा, ये पानी है......


हम तो बर्बाद हुवे, बस यही, खता कर के,
झूठे वादों पे सदा, तेरे भरोसा कर के,
कौन से दिल से बता, तुने भुलाया मुझ को,
कर के धोखा ये, मेरे साथ मिला क्या तुझको...
मैंने की तुझ से वफा, ये मेरी, नादानी है,
तेरी चाहत, की यही आखिरी निशानी है


मेरी आँखों में जो, बहता हुवा, ये पानी है...
तेरी चाहत, की यही आखिरी निशानी है ...

देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ

देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ


होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं
जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ


साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल-सा
हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ


फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह
हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ


धुँधली सी एक याद किसी क़ब्र का दिया
और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ....

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे
जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे


तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं
देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे


बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे


किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है
हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे


अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुमकिन है
हम तो उस दिन रो देंगे जिस दिन धोखा खायेंगे..

तेरा हिज्र मेरा नसीब है तेरा ग़म ही मेरी हयात है

तेरा हिज्र मेरा नसीब है तेरा ग़म ही मेरी हयात है
मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यों तू कहीं भी हो मेरे साथ है


मेरे वास्ते तेरे नाम पर कोई हर्फ़ आये नहीं नहीं
मुझे ख़ौफ़-ए-दुनिया नहीं मगर मेरे रू-ब-रू तेरी ज़ात है


तेरा वस्ल ऐ मेरी दिलरुबा नहीं मेरी किस्मत तो क्या हुआ
मेरी महजबीं यही कम है क्या तेरी हसरतों का तो साथ है


तेरा इश्क़ मुझ पे है मेहरबाँ मेरे दिल को हासिल है दो जहाँ
मेरी जान-ए-जाँ इसी बात पर मेरी जान जाये तो बात है..

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ


याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ


बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे


आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ


चिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली


मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ


बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में


दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ


बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई


फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ..

दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं|

दिल की बात लबों पर लाकर, अब तक हम दुख सहते हैं|
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं|


बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदली,
लेकिन इन प्यासी आँखों में अब तक आँसू बहते हैं|


एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं,
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं|


जिस की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिस के लिये बदनाम हुए,
आज वही हम से बेगाने-बेगाने से रहते हैं|


वो जो अभी रहगुज़र से, चाक-ए-गरेबाँ गुज़रा था,

उस आवारा दीवाने को 'ज़लिब'-'ज़लिब' कहते हैं

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ ।

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ ।
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ ।


जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का,
कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ ।


कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई,
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ ।


मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया,
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ ।


वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी,
मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ ।


वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे,

किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ ।

Thursday 29 June 2017

महेज़ तनख़्वाह से निपटेंगे क्या नखरे लुगाई के



महेज़ तनख़्वाह से निपटेंगे क्या नखरे लुगाई के
हज़ारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के

ये सूखे की निशानी उनके ड्राइंगरूम में देखो
जो टी० वी० का नया सेट है रखा ऊपर तिपाई के

मिसेज़ सिन्हा के हाथों में जो बेमौसम खनकते हैं
पिछली बाढ़ के तोहफ़े हैं, ये कंगन कलाई के

ये ‘मैकाले’ के बेटे ख़ुद को जाने क्या समझते हैं
कि इनके सामने हम लोग ‘थारू’ हैं तराई के

भारत माँ की एक तस्वीर मैंने यूँ बनाई है
बँधी है एक बेबस गाय खूँटे में कसाई के

* महेज – केवल
* लुगाई – पत्नी

अदम गोंडवी

जिस्म की भूख कहें या हवस का ज्वार कहें



जिस्म की भूख कहें या हवस का ज्वार कहें
सतही जज़्बे को मुनासिब नहीं है प्यार कहें

बारहा* फ़र्द* की अज़्मत* ने जिसे मोड़ दिया
हम भला कैसे उसे वक़्त की रफ़्तार कहें

जलते इन्सान की बदबू से हवा बोझल है
फिर भी इसरार* है मौसम को ख़ुशगवार कहें

आर्मस्ट्राँग तो कहता है चाँद पत्थर है
दौरे-हाज़िर* में किसे हुस्न का मेयार* कहें

* बारहा – अक्सर, प्राय:
* फर्द – व्यक्ति, एक आदमी
* अज्मत – श्रेष्ठता, महानता
* इसरार – हठ, आग्रह
* दौरे-हाज़िर – वर्तमान समय में
* मेयार – मानक, मापदण्ड

अदम गोंडवी

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो



भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब* को मुफ़लिसों* की अंजुमन* तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगाजल अब बूर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिशनगी को वोदका के आचमन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धिखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो

* अदब – आदर
* मुफलिसों – गरीबों
* अंजुमन – सभा

अदम गोंडवी

न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से



न महलों की बुलंदी से न लफ़्ज़ों के नगीने से
तमद्दुन* में निखार आता है घीसू के पसीने से

कि अब मर्क़ज़* में रोटी है, मुहब्बत हाशिए पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से

अदब का आईना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहाँ बचपन सिसकता है लिपट कर माँ के सीने से

बहारे-बेकिराँ में ता-क़यामत* का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने* से

अदीबों* की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
सँजो कर रक्खें ‘धूमिल’ की विरासत को क़रीने से

* तमद्दुन – सभ्यता, संस्कृति
* मर्क़ज़ – केन्द्र, सेन्टर
* ता-क़यामत – क़यामत तक
* साहिल – किनारे
* सफीने – नाव
* अदीबों – सभ्य लोग

अदम गोंडवी

जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है



जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है
एक पहेली-सी दुनिया ये गल्प भी है इतिहास भी है

चिंतन के सोपान पे चढ़ कर चाँद-सितारे छू आये
लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है

मानवमन के द्वन्द्व को आख़िर किस साँचे में ढालोगे
‘महारास’ की पृष्ट-भूमि में ओशो का सन्यास भी है

इन्द्र-धनुष के पुल से गुज़र कर इस बस्ती तक आए हैं
जहाँ भूख की धूप सलोनी चंचल है बिन्दास भी है

कंकरीट के इस जंगल में फूल खिले पर गंध नहीं
स्मृतियों की घाटी में यूँ कहने को मधुमास भी है

अदम गोंडवी

विकट बाढ़ की करुण कहानी नदियों का संन्यास लिखा है



विकट बाढ़ की करुण कहानी नदियों का संन्यास लिखा है
बूढ़े बरगद के वल्कल* पर सदियों का इतिहास लिखा है

क्रूर नियति ने इसकी किस्मत से कैसा खिलवाड़ किया
मन के पृष्ठों पर शकुंतला अधरों पर संत्रास* लिखा है

छाया मंदिर महकती रहती गोया तुलसी की चौपाई
लेकिन स्वप्निल, स्मृतियों में सीता का वनवास लिखा है

नागफनी जो उगा रही है गमलों में गुलाब के बदले
शाखों पर उस शापित पीढ़ी का खंडित विश्वास लिखा है

लू के गर्म झकोरों से जब पछुवा तन को झुलसा जाती
इसने मेरे तन्हाई के मरुथल में मधुमास लिखा है

अर्धतृप्ति उद्दाम वासना ये मानव जीवन का सच है
धरती के इस खंडकाव्य में विरह दग्ध उच्छवास लिखा है

* वल्कल – छाल
* संत्रास – डर, भय

अदम गोंडवी

बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को



बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को

सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो* दीजिए
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान* को

शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को

पार कर पाएगी ये कहना मुकम्मल भूल है
इस अहद* की सभ्यता नफ़रत के रेगिस्तान को

* तवज्जों – ध्यान
* दस्तरख़्वान – रसोई घर, खाना खाने का स्थान
* अहद – युग, काल

अदम गोंडवी

मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की



मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की
यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की

आप कहते हैं इसे जिस देश का स्वर्णिम अतीत
वो कहानी है महज़ प्रतिरोध की ,संत्रास की

यक्ष प्रश्नों में उलझ कर रह गई बूढ़ी सदी
ये परीक्षा की घड़ी है क्या हमारे व्यास की?

इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया
सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फ़ास की

याद रखिये यूँ नहीं ढलते हैं कविता में विचार
होता है परिपाक धीमी आँच पर एहसास की

अदम गोंडवी

ज़ुल्फ़-अंगडाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब



ज़ुल्फ़-अंगडाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब

पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी
इस अहद* में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की क़िताब

इस सदी की तिश्नगी* का ज़ख़्म होंठों पर लिए
बेयक़ीनी के सफ़र में ज़िंदगी है इक अजाब*

डाल पर मज़हब* की पैहम* खिल रहे दंगों के फूल
सभ्यता रजनीश के हम्माम* में है बेनक़ाब

चार दिन फुटपाथ के साये में रहकर देखिए
डूबना आसान है आँखों के सागर में जनाब

* अहद – समय, काल
* तिश्नगी – प्यास, इच्छा
*अजाब – अजनबी
* मजहब – धर्म
*पैहम – लगातार, साथ-साथ
* हम्माम – स्नानागार

अदम गोंडवी

गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे



गर चंद तवारीखी तहरीर बदल दोगे
क्या इनसे किसी कौम की तक़दीर बदल दोगे

जायस से वो हिन्दी की दरिया जो बह के आई
मोड़ोगे उसकी धारा या नीर बदल दोगे ?

जो अक्स उभरता है रसख़ान की नज्मों में
क्या कृष्ण की वो मोहक तस्वीर बदल दोगे ?

तारीख़ बताती है तुम भी तो लुटेरे हो
क्या द्रविड़ों से छीनी जागीर बदल दोगे ?

अदम गोंडवी

वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं



वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागे आस्‍था विश्‍वास लेकर क्‍या करें

लोकरंजन हो जहां शम्‍बूक-वध की आड़ में
उस व्‍यवस्‍था का घृणित इतिहास लेकर क्‍या करें

कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्‍या करें

बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्‍स का एहसास लेकर क्‍या करें

गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्‍यार का मधुमास लेकर क्‍या करें

अदम गोंडवी

टी. वी. से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो



टी. वी. से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो
फिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो

बह गए कितने सिकन्दर वक़्त के सैलाब में
अक़्ल इस कच्चे घड़े से कैसे दरिया पार हो

सभ्यता ने मौत से डर कर उठाए हैं क़दम
ताज की कारीगरी या चीन की दीवार हो

मेरी ख़ुद्दारी ने अपना सर झुकाया दो जगह
वो कोई मज़लूम* हो या साहिबे-किरदार* हो

एक सपना है जिसे साकार करना है तुम्हें
झोपड़ी से राजपथ का रास्ता हमवार हो

* मज़लूम = जिस पर ज़ुल्म किया गया हो, पीड़ित
* साहिबे-किरदार = प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला/ अच्छे चरित्र वाला

अदम गोंडवी

सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है



सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद* है
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है

कोठियों से मुल्क के मेआर* को मत आंकिए
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पे आबाद है

जिस शहर में मुंतजिम* अंधे हो जल्वागाह के
उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है

ये नई पीढ़ी पे मबनी* है वहीं जज्मेंट दे
फल्सफा गांधी का मौजूं* है कि नक्सलवाद है

यह गजल मरहूम मंटों की नजर है, दोस्तों
जिसके अफसाने में ‘ठंडे गोश्त’ की रुदाद* है

* नाशाद – उदास, दुखी
* मेआर – मापदंड, रूतबा
* मुन्तज़िम – व्यवस्थापक
* मबनी – निर्भर
* मौजूं – उचित, उपयुक्त
* रूदाद – विवरण, वृतांत

अदम गोंडवी

जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये



जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये
आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये

जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये

जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को
किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये

मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार
दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये

अदम गोंडवी

भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है



भुखमरी की ज़द में है या दार के साये में है
अहले हिन्दुस्तान अब तलवार के साये में है

छा गई है जेहन की परतों पर मायूसी की धूप
आदमी गिरती हुई दीवार के साये में है

बेबसी का इक समंदर दूर तक फैला हुआ
और कश्ती कागजी पतवार के साये में है

हम फकीरों की न पूछो मुतमईन वो भी नहीं
जो तुम्हारी गेसुए खमदार के साये में है

अदम गोंडवी

जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में



जो उलझ कर रह गई है फाइलों के जाल में
गाँव तक वो रोशनी आएगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
रमसुधी की झोपड़ी सरपंच की चौपाल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में
ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसाल में

अदम गोंडवी

आँख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे



आँख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे
अपने शाहे वक्त का यूँ मर्तबा आला रहे

देखने को दे उन्हें अल्लाह कंप्यूटर की आँख
सोचने को कोई बाबा बाल्टी वाला रहे

तालिबे शोहरत* हैं कैसे भी मिले मिलती रहे
आये दिन अखबार में प्रतिभूति घोटाला रहे

एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
चार छै चमचे रहें माइक रहे माला रहे

* तालिबे शोहरत – प्रसिद्धि की इच्छा रखने वाला

अदम गोंडवी

आइए महसूस करिए जिंदगी के ताप को



आइए महसूस करिए जिंदगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको

जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी इक कुएँ में डूब कर

है सधी सिर पर बिनौली कंडियों की टोकरी आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी

चल रही है छंद के आयाम को देती दिशा मैं इसे कहता हूँ सरजू पार की मोनालिसा

कैसी यह भयभीत है हिरनी-सी घबराई हुई लग रही जैसे कली बेला की कुम्हलाई हुई

कल को यह वाचाल थी पर आज कैसी मौन है जानते हो इसकी ख़ामोशी का कारण कौन है

थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेख़बर कृष्ना बेख़बर राहों में थी मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाँहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई, छटपटाई पहले, फिर ढीली पड़ी, फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया, वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया

और उस दिन ये हवेली हँस रही थी मौज में, होश में आई तो कृष्ना थी पिता की गोद में

जुड़ गई थी भीड़ जिसमें ज़ोर था सैलाब था, जो भी था अपनी सुनाने के लिए बेताब था

बढ़ के मंगल ने कहा, ‘काका, तू कैसे मौन है, पूछ तो बेटी से आख़िर वो दरिंदा कौन है

कोई हो संघर्ष से हम पाँव मोड़ेंगे नहीं, कच्चा खा जाएँगे ज़िंदा उनको छोडेंगे नहीं

कैसे हो सकता है होनी कह के हम टाला करें, और ये दुश्मन बहू-बेटी से मुँह काला करें’

बोला कृष्ना से – ‘बहन, सो जा मेरे अनुरोध से, बच नहीं सकता है वो पापी मेरे प्रतिशोध से’

पड़ गई इसकी भनक थी ठाकुरों के कान में, वे इकट्ठे हो गए सरपंच के दालान में

दृष्टि जिसकी है जमी भाले की लंबी नोक पर, देखिए सुखराज सिंह बोले हैं खैनी ठोंक कर

‘क्या कहें सरपंच भाई! क्या ज़माना आ गया, कल तलक जो पाँव के नीचे था रुतबा पा गया

कहती है सरकार कि आपस में मिलजुल कर रहो, सुअर के बच्चों को अब कोरी नहीं हरिजन कहो

देखिए ना यह जो कृष्ना है चमारों के यहाँ, पड़ गया है सीप का मोती गँवारों के यहाँ

जैसे बरसाती नदी अल्हड़ नशे में चूर है, न पुट्ठे पे हाथ रखने देती है, मगरूर है

भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ, फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई, जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई

वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई, वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक्कार है, हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है

कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की, गाँव की गलियों में क्या इज्जत रहेगी आपकी’

बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया, हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया

क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था, हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था

रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुरज़ोर था, भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था

सिर पे टोपी बेंत की लाठी सँभाले हाथ में, एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में

घेर कर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने – ‘जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने’

निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोल कर, इक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर

गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया, सुन पड़ा फिर, ‘माल वो चोरी का तूने क्या किया?’

‘कैसी चोरी माल कैसा?’ उसने जैसे ही कहा, एक लाठी फिर पड़ी बस, होश फिर जाता रहा

होश खो कर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर, ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर

“मेरा मुँह क्या देखते हो! इसके मुँह में थूक दो, आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो”

और फिर प्रतिशोध की आँधी वहाँ चलने लगी, बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी

दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था, वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था

घर को जलते देख कर वे होश को खोने लगे, कुछ तो मन ही मन मगर कुछ ज़ोर से रोने लगे

‘कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं, हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं’

यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल-से, आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से

फिर दहाड़े, ‘इनको डंडों से सुधारा जाएगा, ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा’

इक सिपाही ने कहा, ‘साइकिल किधर को मोड़ दें, होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें’

बोला थानेदार, ‘मुर्गे की तरह मत बाँग दो, होश में आया नहीं तो लाठियों पर टाँग लो

ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है, ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है जेल है’

पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल, ‘कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल’

उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को, सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को

धर्म, संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को, प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को

मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आएँ मेरे गाँव में, तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में

गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही, या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही

हैं तरसते कितने ही मंगल लँगोटी के लिए, बेचती हैं जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए

अदम गोंडवी

तुम्‍हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है



तुम्‍हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जमहूरियत* का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है

लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ’ गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है

तुम्‍हारी मेज चाँदी की तुम्‍हारे ज़ाम सोने के
यहाँ जुम्‍मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

* जमहूरियत – लोकतंत्र
* रकाबी – प्लेट, थाली

अदम गोंडवी

वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है



वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बँगले में आई है

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्‍नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना* कर ले
हमारा मुल्‍क इस माने में बुधुआ की लुगाई है

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है

* जिना – अनुचित शारारिक सम्बन्ध

अदम गोंडवी

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है



घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दूँ धूप फाल्गुन की नशीली है

भटकती है हमारे गाँव में गूँगी भिखारन-सी
सुबह से फरवरी बीमार पत्नी से भी पीली है


बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है

सुलगते जिस्म की गर्मी का फिर एहसास वो कैसे
मोहब्बत की कहानी अब जली माचिस की तीली है


अदम गोंडवी

बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है



बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है
कोई रूसो कोई हिटलर कोई खय्याम होता है

ज़हर देते हैं उसको हम कि ले जाते हैं सूली पर
यही हर दौर के मंसूर का अंजाम होता है

जुनूने-शौक में बेशक लिपटने को लिपट जाएँ
हवाओं में कहीं महबूब का पैगाम होता है

सियासी बज़्म में अक्सर ज़ुलेखा के इशारों पर
हकीकत ये है युसुफ आज भी नीलाम होता है

अदम गोंडवी

जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम कर देंगे



जो डलहौजी न कर पाया वो ये हुक्काम* कर देंगे
कमीशन दो तो हिन्दुस्तान को नीलाम कर देंगे

सुरा व सुन्दरी के शौक में डूबे हुए रहबर
दिल्ली को रंगीलेशाह* का हम्माम* कर देंगे

ये वन्देमातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगुना दाम कर देंगे

सदन को घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे
अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे

* हुक्काम – वो लोग जिनके पास अधिकार हो, अधिकारी वर्ग
* रंगीलेशाह – एक अय्याश मुग़ल बादशाह
* हम्माम – स्नानागार, बाथरूम

अदम गोंडवी