Saturday 21 May 2016

सब कुछ है मेरे पास, बस एक तुझ को छोड़कर

ऐ वक़्त तुम हो किधर?
कई दिनों से तुम दिखे नहीं..
तुम तेज़ भाग रहे हो या मैं धीमे चल रहा हूँ..
शायद मैं ही धीमे चल रहा हूँ..
राह में ख़्वाब मिले, अरमान मिले, आसना भी मिले..
पर तुझे पता है ना तेरे बिना मैं किसी से नहीं मिलता..
तो कैसे तुम बिन उनका एहतराम करूँ?
दौड़ते भागते साँसें फूल सी रही हैं..
कैसे तुम बिन कुछ पल आराम करूँ..

रुक न थोड़ी देर, साथ ही चलते हैं..
गर साथ नहीं चल सकते तो साथ चलना ही सिखा दे..
तुम आखिर जा किधर रहे हो, बस यही दिखा दे..
रुक न थोड़ी देर, साथ बैठते हैं, बातें करते हैं..
तेरे बिना हर एक चीज़ बुरी सी लगती है..
तेरे बिना ज़िन्दगी ही अधूरी सी लगती है..

Saturday 14 May 2016

एक कर्मचारी का छुट्टी से वापस आने का दर्द

It happens.......

छुट्टी से वापस आने का दर्द ……

घर जाने से पहले ही लौटने का टिकट हूँ बनवाता …

घर जाता हूँ तो मेरा बैग ही मुझे है चिढ़ाता ,
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता. ..!

माँ कहती रहती सामान बैग में फ़ौरन डालो
हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता ........
तू एक मेहमान है अब ये पल पल मुझे बताता ...

घर पंहुचने से पहले ही लौटने की टिकट,
वक़्त परिंदे सा उड़ता जाता ,
उंगलियों पे लेकर जाता हूं गिनती के दिन,

फिसलते हुए जाने का दिन पास आता ......
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता ...

अब कब होगा आना सबका पूछना ,
ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता ,
मनुहार से दरवाजे से निकलते तक ,

बैग में कुछ न कुछ भरते जाता ...
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता. ..

जिस बगीचे की गोरैय्या भी पहचानती थी ,
अरे वहाँ अमरुद का पेड़ पापा ने कब लगाया ??
घरके कमरे की चप्पे चप्पे में बसता था मैं ,

आज लाइट्स ,फैन के स्विच भूल हाथ डगमगाता ...
तू एक मेहमान है, अब ये पल पल मुझे बताता ...

पास पड़ोस जहाँ बच्चा बच्चा था वाकिफ ,
बेटा कब आया पूछने चला आता ....
कब तक रहोगे पूछ अनजाने में वो

घाव एक और गहरा देके जाता ...
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता. ..

ट्रेन में तुम्हारे हाथो की बनी रोटियों का
डबडबाई आँखों में आकार डगमगाता ,
लौटते वक़्त वजनी हो गया बैग ,

सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता .....
तू एक मेहमान है अब, ये पल पल मुझे बताता .....

एक कर्मचारी की व्यथा।।।।।।।

Saturday 7 May 2016

तन्हा दिल तन्हा सफ़र

हर दिन अपने लिए एक जाल बुनता हूँ,
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ|

हर रोज़ इम्तिहान लेती है ज़िंदगी,
हर रोज़ मगर मैं मोहब्बत चुनता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हू…

बहुत दूर चला आया हूँ कारवाँ से,
तन्हा रास्तों में एक हमसफ़र ढूंढता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

अंधेरों में तुम्हारा चेहरा साफ़ दिखता है,
तुम सामने होते हो जब आँख मूंदता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

सिर्फ एहसास ए मोहब्बत बन जाता हूँ,
जब तेरी कमी को मैं सुनता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

तेरे होते हुए शायद मुमकिन नहीं,
तेरे जाते ही अपनी कलम ढूंढता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

सब हैरान हैं देख कर मेरा इश्क,
मैं तेरी वफ़ा में ऐसा झूमता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

दिल में आशियाने की आरज़ू लिए,
मैं शहरों शहरों घूमता हूँ|
कभी ज़हन, कभी दिल, कभी रूह की सुनता हूँ…

Monday 2 May 2016

हमारी अधूरी कहानी

वक़्त ने फिर एक करवट ली..
मुझे उसके शहर से गुज़रने का मौका दिया..
उसका शहर उस शहर में..
उसकी मौजूदगी का एहसास..
उस फ़िज़ा में उसके आस पास..
होने का एक डगमगाता सा विश्वास..
तरसती आँखें उसके दीदार को बेक़रार थीं..
एक बार बस एक बार उसे देखने को बेहाल थीं..
लौट आई मेरी नज़रें टकरा कर हर दीवार से..
हो ना सका मैं रुबरु दीदार ए यार से..
लौट गई थी जिस तरह वो मेरे शहर से..
ना चाहते हुए भी लौट आया मैं..
उसी तरह उसके शहर से..
अब ना किसी से कोई गिला..
कोई शिकवा कोई तकरार है..
दो दिलों के बीच मजबूरियों की एक दीवार है..
समाज के कमज़ोर बंधन..
हर रिश्ते को खोखला बनाते हैं..
हम जैसे मजबूर इंसान इन बंधनों को..
तक़दीर का नाम दे जाते हैं..
और रह जाती है तो बस आधी अधूरी प्रेम कहानियाँ..

Sunday 1 May 2016

तेरी चूड़ियों की खनक में बसी है मेरी ज़िन्दगी

माँ की चूड़ियाँ बजती है

माँ की चूड़ियाँ बजती हैं
सुबह सुबह नींद से जगाने के लिये

माँ की चूड़ियाँ बजती हैं
एक एक कौर बना कर मुझे खिलाने के लिये

माँ की चूड़ियाँ बजती हैं
थपकी दे कर मुझे सुलाने के लिये

माँ की चूड़ियाँ बजती हैं
आर्शीवाद और दुआयें देने के लिये..........

हे! ईश्वर सदा मेरी माँ की चूड़ियाँ
इसी तरह बजती रहें खनकती रहें

ये जब तक बजेंगी खनकेंगी
मेरे पापा का प्यार दुलार
मेरे सिर पर बना रहेगा......
वरना तो मैं कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं

बहन की चूड़ियाँ बजती हैं

बहन की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरी कमर पर प्यार भरा
धौल जमाने के लिये

बहन की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरे माथे पर चंदन टीका लगाने के लिये

बहन की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरी कलाई पर राखी बाँधने के लिये

बहन की चूड़ियाँ बजती हैं
लड़ने और झगड़ने के लिये

हे! ईश्वर सदा मेरी बहन की चूड़ियाँ
इसी तरह बजती रहें खनकती रहें

ये जब तक बजेंगी साले बहनोई का
रिश्ता रहेगा
और रहेगा भाई बहन का प्यार जन्मों तक..........

पत्नी की चूड़ियाँ बजती हैं

पत्नी की चूड़ियाँ बजती हैं
प्रतीक्षारत हाथों से दरवाजा खोलने के लिये

पत्नी की चूड़ियाँ बजती हैं
प्यार और मनुहार करने के लिये
.
पत्नी की चूड़ियाँ बजती हैं
हर दिन रसोई में
मेरी पसन्द के तरह तरह के
पकवान बनाने के लिये

हे ईश्वर मेरी पत्नी की चूड़ियाँ
इसी तरह बजती रहें खनकती रहें

जब तक ये चूड़ियाँ बजेंगी खनकेंगी
तब तक मैं हूं मेरा अस्तित्व है
वरना, इनके बिना मैं कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं

बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं

बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं
पापा पापा करके ससुराल जाते वक्त
मेरी कौली भरते समय

बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं
दौड़ती हुयी आये और मेरे
सीने से लगते वक्त

बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं
सूनी आँखों में आँसू लिये
मायके से ससुराल जाते वक़्त.......

बेटी की चूड़ियाँ बजती हैं
रूमाल से अपनी आँख के आँसू
पापा से छिपा कर पोंछते वक़्त

हे! ईश्वर मेरी बेटी की चूड़ियाँ
इसी तरह बजती रहें खनकती रहें

जब तक ये बजेंगी खनकेंगी
मैं उससे दूर रह कर भी
जी सकूंगा......
खुश रह सकूंगा

बहू की चूड़ियाँ बजती हैं

बहू की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरे घर को अपना बनाने के लिये

बहू की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरे दामन को खुशियों से
भरने के लिये

बहू की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरा वंश आगे बढ़ाने के लिये

बहू की चूड़ियाँ बजती हैं
मेरे बेटे को खुश रखने के लिये

हे! ईश्वर मेरी बहू की चूड़ियाँ
सदा इसी तरह बजती रहें खनकती रहें

जब तक ये बजेंगी खनकेंगी, मेरा बुढ़ापा सार्थक है वरना..
इनके बिना तो मेरा जीना ही निष्क्रिय है और निष्काम है..

मुझसे दोस्ती करोगे ??

कोई कवि नहीं हूँ मैं, ना मुझे काव्य रस का ज्ञान है..
मैं तो एक अज्ञानी हूँ, अपने व्यक्तित्व पर ना मुझे अभिमान है..

लिखना मेरा व्यापार नहीं, मैं तो बस कभी कलम उठा लेता हूँ..
जो बात खुद से भी नहीं कह पाता, वो कुछ शब्दों में पिरो देता हूँ..

दिल का बोझ तब कुछ कम सा लगता है, तन्हाई में होने के बाद भी..
अकेले होने का एहसास एक भ्रम सा लगता है..

मैंने तो बस कोरे पन्नों पर, मन की स्याही से चन्द शब्द बिखेर दिए..
कुछ के लिए ये पढ़कर कविता, और कुछ को ये सिर्फ़ शब्दों का ढेर लगे..

मेरी रचनाएँ तो बस मेरी ही कहानी कहती हैं..
जो एहसास ज़ुबान से व्यक्त नहीं हो पाते, वो कविता नामक झरोखे से झाँका करते हैं..

किसी अलग दुनिया में नहीं रहता, ना भावनाओं के सरोवर में गोते खाता हूँ..
ना तन्हाई मेरी संगनी है, ना किसी शोर शराबे से घबराता हूँ..

मैं तो हूँ बस एक सुकून भरे जहां की खोज में, अपने आप को पाने की इच्छा है..
दुनिया को तो जान ना सका, ख़ुद को पहचानने की हसरत है..

कोई कवि नहीं हूँ मैं, ना मुझे काव्य रस का ज्ञान है..
मैं तो एक अज्ञानी हूँ, अपने व्यक्तित्व पर ना मुझे अभिमान है..

मेरी कल्पना एक खूबसूरत ज़िन्दगी

लम्बा सफ़र, थकन ढूंढती थोड़ी सी छाँव..
धूप की तपिश में सुलगते से पाँव..
बड़े दिनों से मन को सुकून की ज़रुरत है..
फिर भी ज़िन्दगी कुछ तो ख़ूबसूरत है..
कितने जतन से चुराया एक लम्हा, समय से..
कि बैठ कुछ मुस्करा लूँगी उसके चले जाने से पहले..
पर फिसल जाना मुट्ठी से, वक़्त की फ़ितरत है..
फिर भी ज़िन्दगी कुछ तो ख़ूबसूरत है..
मन के पंखों ने भरी उड़ान..
सपनों में था बस नीला आसमान..
क्या हो जाता गर राह न रोकता ये तूफ़ान..
खैर, टूटते बनते इरादों की लहर में..
नये सपने भी पैदा हो जाते हैं..
टीस रहती है अधूरे ख़्वाबों की, पर..
नये ख़्वाब देखते रहना अब मेरे मन की एक नई लत है..
चाहे जो भी हो, हाँ फिर भी ज़िन्दगी कुछ तो ख़ूबसूरत है..