Thursday 11 February 2016

पगली लड़की

मावस की काली रातों में, दिल का दरवाजा खुलता है..
जब दर्द की काली रातों में, गम आंसूं के संग घुलता हैं..
जब पिछवाड़े के कमरे में, हम निपट अकेले होते हैं..
जब घड़ियाँ टिक -टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं..

जब बार बार दोहराने से, सारी यादें चुक जाती हैं..
जब उंच-नीच समझाने में, माथे की नस दुःख जाती हैं..
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है..
और उस पगली लड़की  के बिन मरना भी भारी लगता है..

जब पोथे खाली होते हैं, जब हर्फ़ सवाली होते हैं..
जब ग़ज़लें रास नहीं आतीं, अफसाने गाली होते हैं..
जब बासी फीकी धुप समेटें, दिन जल्दी ढल जाता है..
जब सूरज का लश्कर, छत से गलियों में देर से जाता है..

जब जल्दी घर जाने की इच्छा, मन ही मन घुट जाती है..
जब कॉलेज से घर लाने वाली ,पहली बस छुट जाती है..
जब बेमन से खाना खाने पर, माँ गुस्सा हो जाती है..
जब लाख मन करने पर भी, पारो पढने आ जाती है..
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है..
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता   है..

और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी  लगता है..

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज सुनाई देती  है..
जब दर्पण में आँखों के नीचे झाई दिखाई देती  है..
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो..
क्या लिखते हो दिनभर, कुछ सपनों का भी सम्मान  करो..
जब बाबा वाली बैठक  में कुछ रिश्ते वाले आते  हैं..
जब बाबा हमें  बुलाते  हैं, हम जाते  हैं, घबराते  हैं..
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है..
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है..
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है..

तब एक पगली  लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है..
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता  है..

दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं..
उसके दिल में भैया, तेरे जैसे प्यारे जज्बात नहीं..
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है..
छुप-छुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कुछ ना कहती है..
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती  हूँ..
लेकिन मै हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती  हूँ..

उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा..
ये कथा-कहानी किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा..

बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है..
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है..

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