Thursday 18 February 2016

तुझको सोचा तो पता हो गया रुसवाई को



तुझको सोचा तो पता हो गया रुसवाई को
मैंने महफूज़ समझ रखा था तन्हाई को

जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
ख़ाक समझेगा मुसव्विर तेरी अँगडाई को

अपनी दरियाई पे इतरा न बहुत ऐ दरिया
एक कतरा ही बहुत है तेरी रुसवाई को

चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन
झूठ से हारते देखा नहीं सच्चाई को

साथ मौजों के सभी हो जहाँ बहने वाले
कौन समझेगा समन्दर तेरी गहराई को

वसीम बरेलवी

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