Wednesday 10 February 2016

मेरा ही नसीब था

 
सब कुछ पास था उस के |
मुझे देने के लिए वो गरीब था |
उस ने बहुत धन दोलत दिया,
दुनिया को पर में तो एक गरीब था |

जो भी मिला उसी से मिला | ये मेरा ही नसीब था 
मेरा जनम हुआ ये भी उस के लिए बड़ा अजीब था |

कोई हंसा, कोई रोया, मेरे घर का ये माहोल था 
उस वक़्त माँ का दर्द में न समझ पाया था 
पर मुझे पता है माँ के में कितना करीब था 

जन्म की रात काली थी | चाँद भी न आया था 
दिन में बदलो ने डाला डेरा ये मेरा नसीब था 
दादा जी कहते है वो साल पड़ा बड़ा अकाल था |
सब कुछ कला था सिर्फ वो ही मेरा गुनगार था
ये कैसा मेरा नसीब था  ????????

बचपन बिता जवानी आई , घर छोड़ा ये कितना अजीब था 
आज तो माँ की ममता के लिए जीता हूँ  | हर रोज़ गम पिता हूँ 
 
गाव छोड़ के आया लेकिन यहाँ भी जीना मुहाल था ................

आज आज माँ के साथ मंदिर गया 
मंदिर में किसी ने पूछा तेरा चेहरा इतना उदास क्यों है| ?????
बरसती आखों में प्यास क्यों है और तुम मंदिर में क्यों हूँ 
जिनकी नजरो में तू कुछ भी नहीं वो तेरे लिए आज इतना खास क्यों है ||?

मैं कुछ न बोल पाया क्यों की वो भी तो मेरा ही रकीब था 
न कमी थी कोई जहान में, कमजोर मेरा ही नसीब था 

No comments:

Post a Comment